गुरुपूर्णिमा आत्मचिंतन और व्यक्तित्व परीक्षण का दिन: डॉ. बिस्सू

बांसवाड़ा 

गुरुपूर्णिमा भारत की महान  परम्परा के प्रति कृतज्ञता पूर्वक आत्म चिंतन और व्यक्तित्व परिष्कार का दिन हैगुरु अखंड मंडलाकार ज्ञान का प्रतीक है जिसका न प्रारंभ है ना कोई अंत। गुरु बनते या बनाते नहीं, आत्म चेतना को जगाते हैं। गूढ़ और सुप्त अन्त: चेतना जब  किसी के प्रत्यक्ष अथवा भावात्मक सम्पर्क से स्फूर्त होती है तो जगाने वाली सत्ता गुरु कहलाती है।

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यह विचार श्री गोविंद गुरु राजकीय महाविद्यालय बांसवाड़ा में रुक्टा राष्ट्रीय के प्रदेश महामंत्री डॉ. सुशील कुमार बिस्सू ने संगठन की बांसवाड़ा इकाई के गुरुवंदन कार्यक्रम में व्यक्त किए। डॉ. बिस्सू ने कहा कि गुरु के सान्निध्य में अंधेरों के व्यूह टूटने लगते हैं और व्यक्तित्व अपनी आत्म ज्योति से दमकने लगता है। दमकता हुआ व्यक्तित्व इह लौकिक अभ्युदय का और पारलौकिक नि:श्रेयस का हेतु बनता है। इसलिए जो कोई जिंदगी को अंधकार से प्रकाश की ओर प्रेरित करे, वह गुरु है।

डा. बिस्सू ने कहा कि अंधेरे चाहे अपने व्यक्तित्व की कमजोरी के हों या बाहरी परिवेश के, उनका ध्वंस प्रकाश के बिना संभव नहीं है। इसलिए गुरु को  ज्ञानांजन शलाका से अज्ञान तिमिरान्ध का विनाशक  कहा गया है। गुरु की मूल भूमिका यही है।

रुक्टा राष्ट्रीय की बांसवाड़ा इकाई के गुरुवंदन कार्यक्रम में उपस्थित शिक्षक और विद्यार्थी

डा. बिस्सू ने कहा कि गुरु जीवन में देते कुछ नहीं जो पहले से ही प्राप्त है उसे प्रकाशित करते हैं। हमारी महान गुरु परम्परा में ऐसा गुरुत्वाकर्षण पैदा करने के हजारों अमर उदाहरण हैं। माँ सम्पूर्ण गुरु है। माँ तो गर्भवास से ही शिशु का व्यक्तित्व गढ़ना प्रारंभ कर देती है। इसलिए दुनिया में माँ से पवित्र महान कुछ भी नहीं। वही प्रथम गुरु है। धरती पर जन्म लेने के बाद पिता और परिवार जीवन के लिए जरुरी संस्कार गढ़ते हैं। शिक्षक केवल सिखाने वाला होता है लेकिन सीखे हुए को आचरणीय बनाने की कला का विकास करने वाला गुरु है।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में विषय प्रतिपादन करते हुए डॉ. राजेश जोशी ने आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु परंपरा के रूप में मनाने के निहितार्थ से अवगत कराया। डॉ. जोशी ने आर्यावर्त की महान वैदिक गुरुशिष्य परंपरा, मूल्य आधारित व्यवस्था और विविध दृष्टांतों से ज्ञान की व्यापकता का बोध कराया।

समारोह की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ संकाय सदस्य डॉ. राजेंद्र शर्मा ने कहा कि भारत के ऐतिहासिक, सुसम्पन्न और सुसंस्कृत राष्ट्रवाद में यहां  की गुरुपरंपरा ही केन्द्र में रही है। डॉ. शर्मा ने कहा कि सामान्य व्यक्ति भी जीवन को दिशा देकर गुरु बन सकता है। डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम और गोविंद गुरु आदि के उदाहरणों से विद्यार्थियों को लक्ष्य निर्धारित कर अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाना चाहिए।

समारोह का संचालन इकाई सदस्य डॉ. लक्ष्मण सरगडा ने और आभार ज्ञापन डॉ. आशीष कुमार ने किया। इस अवसर पर डॉ. अलका रस्तोगी, रामरज सिंह, डॉ. प्रमोद वैष्णव, मनोज सक्सेना, डॉ. शफकत राणा, डॉ. कृष्णबलदेव सिंह राठौड़, डॉ. अर्पित पाठक सहित अनेक शिक्षक व विद्यार्थियों समारोह में उपस्थित रहे।

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