भरतपुर
भरतपुर के महारानी श्री जया राजकीय महाविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर प्रो. डॉ. पूनम चौधरी की पुस्तक “नन्हे ईश्वर” पर एक सारगर्भित परिचर्चा आयोजित की गई। यह पुस्तक गांव-देहात में रहने वाले गरीब, वंचित और पिछड़े वर्ग के बच्चों की हृदयस्पर्शी और मार्मिक कहानियों का संग्रह है, जिसे लेखिका ने अपने सरकारी विद्यालयों में दी गई सेवा अवधि के दौरान प्राप्त अनुभवों के आधार पर लिखा है।
कार्यक्रम की शुरुआत देवी सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन से हुई। बीज वक्ता के रूप में संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. योगेंद्र भानु ने शिक्षक पद की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शिक्षक केवल एक पद नहीं, बल्कि एक संकल्प है, जो बच्चों में शिक्षा के प्रति आकर्षण पैदा करता है और उन्हें उत्तरदायी नागरिक बनाता है। उन्होंने इस पुस्तक को शिक्षक समुदाय के लिए प्रेरणादायक बताया।
हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. इला मिश्रा ने समीक्षा प्रस्तुत करते हुए बताया कि डॉ. पूनम चौधरी हिन्दी विभाग की मेधावी छात्रा रही हैं और उनकी जिज्ञासु प्रवृत्ति सदैव उन्हें विशेष बनाती थी। उन्होंने कहा कि “नन्हे ईश्वर” में संकलित कहानियाँ पाठकों के मन को झकझोरने वाली हैं और बाल-मन के प्रति संवेदनशीलता विकसित करती हैं।
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि भारती भारद्वाज, RAS थीं, जबकि विशिष्ट अतिथि महामना जगदीश गुप्त (पूर्व क्षेत्र संगठन मंत्री, अखिल भारतीय साहित्य परिषद) और सीमा रिजवी (सी.ओ. गाइड) रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्राचार्य डॉ. हरबीर सिंह ने की।
इस अवसर पर विभिन्न विद्वानों और साहित्यकारों द्वारा “नन्हे ईश्वर” की समीक्षाएँ प्रस्तुत की गईं
- ग्वालियर के गीतकार, शायर और साहित्यकार रोशन मनीष द्वारा लिखी समीक्षा का वाचन राजेंद्र सिंह चौधरी, अतिरिक्त जिला शिक्षा अधिकारी, भरतपुर ने किया।
- प्रो. डॉ. राजरानी शर्मा (सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष, ग्वालियर) की समीक्षा को नेम सिंह, पूर्व प्राचार्य, केंद्रीय विद्यालय, भरतपुर ने प्रस्तुत किया।
- डॉ. माधुरी यादव (अनुसंधान अधिकारी, जनजाति कार्य विभाग, मध्य प्रदेश शासन, भोपाल) द्वारा लिखी समीक्षा को कुलदीप सिंह ने पढ़ा।
इस कार्यक्रम में महाविद्यालय के संकाय सदस्य, छात्र-छात्राएँ और प्रशासनिक अधिकारी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। पुस्तकालय समिति के वरिष्ठ सदस्य डॉ. ओमप्रकाश शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित किया, जबकि डॉ. अनिल कुमार नागर ने कार्यक्रम का संचालन किया।
इस सारगर्भित परिचर्चा ने शिक्षा, समाज और बाल-मन की भावनाओं को समझने की दिशा में एक महत्वपूर्ण संवाद स्थापित किया।
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