सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी नहीं मानी राजस्थान सरकार, समायोजित कर्मचारियों के करोड़ों अटके

जयपुर |  योगेन्द्र गुप्ता |


 

मामलों को कैसे लटकाया,भटकाया और अटकाया जाता है उसकी एक बानगी राजस्थान के कांग्रेस शासन में देख लीजिए। मामला अनुदानित शिक्षण संस्थाओं से राजकीय सेवा में समायोजित किए गए हजारों कर्मचारियों का है।

मामलों को कैसे लटकाया, भटकाया और अटकाया जाता है उसकी एक बानगी राजस्थान के कांग्रेस शासन में देख लीजिए। मामला अनुदानित शिक्षण संस्थाओं से राजकीय सेवा में समायोजित किए गए हजारों कर्मचारियों का है। पहले तो इन कर्मचारियों को कांग्रेस ने ही अपने पिछले शासन काल में राजकीय सेवा में समायोजित कर लाभ पहुंचाया और अब उसका दुबारा शासन आया तो वही इन कर्मचारियों को रुला रहा है। अनेक कर्मचारी सुविधा मिलने की आस में दिवंगत हो गए तो हजारों कर्मचारी रिटायर हो गए। इन कर्मचारियों ने सुविधाएं पाने के लिए करीब चार अरब रुपए के चेक सरकार को दे रखे हैं। यह राशि जुटाने के लिए कई कर्मचारियों के घर और खेत बिक गए या फिर उन पर उधारी  चढ़ गई। पर सरकार का दिल नहीं पसीजा। जबकि सुप्रीम कोर्ट उनके हक में फैसला सुना चुका है। लेकिन नौकरशाह इन कर्मचारियों की खुशी के आगे दीवार बनकर खड़े हैं। ‘ नई हवा ‘ ने जब इस मामले को खंगाला तो यह पूरा प्रकरण सामने आया।


 

यह है मामला

पहले राजस्थान में अनुदानित शिक्षण संस्थानों द्वारा वेतन और अन्य भत्तों का समय पर भुगतान नहीं किया जाता था। वर्ष 2011 में यह बात मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तक पहुंची। उन्होंने तब उनकी बात सुनी और ऐसे सभी अनुदानित कर्मचारियों को राजकीय सेवा में समायोजित करने के आदेश दिए। नौकरशाहों को यह नागवार गुजरा। उन्होंने मनमर्जी से राजस्थान स्वैच्छिक ग्रामीण शिक्षा सेवा के ऐसे-ऐसे नियम बनाए कि इन कर्मचारियों को फिर  सड़क पर उतरना पड़ रहा है। जब इन कर्मचारियों को राजकीय सेवा में समायोजित किया गया तब उनकी तादाद  करीब ग्यारह हजार थी। इनमें एक हजार कालेज शिक्षा और करीब दस हजार स्कूल शिक्षा के कर्मचारी शामिल हैं। इनमें से करीब पांच हजार कर्मचारी बिना लाभ लिए सेवानिवृत्त हो गए। पुरानी पेंशन का लाभ लेने के लिए पीएफ जमा कराने वाले चार हजार कर्मचारियों ने करीब चार अरब रुपए के चेक सरकार को सौंप दिए। औसतन  एक – एक कर्मचारी ने दस – दस लाख के चेक दिए।


 

नौरशाहों ने ऐसे अटकाए रोड़े

इन कर्मचारियों के समायोजन के बाद से नौकरशाहों ने रोड़े अटकाने शुरू कर दिए थे। उन्होंने राजस्थान स्वैच्छिक ग्रामीण शिक्षा सेवा की नियमावली और शर्तें ऐसी बनाईं कि इन कर्मचारियों के सामने दुविधाएं खड़ी हो गईं जो आज तक बनी हुई हैं। नौकरशाहों ने इन कर्माचारियों को पेंशन नियमों तक से दूर कर दिया। समायोजित करने पर नौकरशाहों ने राजस्थान सिविल सेवा (पेंशन) नियम -1996 के स्थान पर सिविल सेवा ( अंशदायी पेंशन ) स्कीम -2005 लागू की। स्थानांतरण में गांव की बाध्यता रख दी। पदोन्नति से वंचित कर दिया। इनकी नियुक्ति को नई नियुक्ति का दर्जा देते हुए एनपीएस के दायरे  में लाया गया जबकि सभी समायोजित कर्मचारी 2004 से पूर्व से ही नियोजित थे। इस पर विवश कर्मचारी अदालत चले गए। हाईकोर्ट से होते-होते सुप्रीम कोर्ट तक बात पहुंची। सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार की सारी दलीलों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि ये सभी कर्मचारी अनुदानित संस्थानों में 2004 से पूर्व भी नियोजित थे। सरकार की दलील थी कि ये सभी नए कर्मचारी हैं। इसलिए उनको पुरानी पेंशन का लाभ देय नहीं है। पर सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को सिरे से खारिज कर दिया और सरकार को आदेश दिए कि समायोजित कर्मचारियों को पुराना कर्मचारी माना जाए और उसी हिसाब से राजकीय कर्मचारियों के समान सभी हित लाभ दिए जाएं। हाईकोर्ट की जोधपुर बेंच भी ऐसा फ़ैसला सुना चुकी थी ।


रिव्यू पिटीशन पेश कर फिर अटकाया

सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी सरकार ने दरकिनार कर दिया। नौकरशाहों ने सरकार के समक्ष भारी आर्थिक भार की गलत  रिपोर्ट पेश कर मामले को लम्बा खींचने को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट जोधपुर की डबल बेंच में रिव्यू पिटीशन पेश करने की सलाह दे दी। पिटीशन पेश भी हो गई। इस तरह मामले को फिर अटका दिया। अभी डीबी बेंच को यह फ़ैसला करना है कि यह रिव्यू पिटीशन सुनने लायक है भी या नहीं। करीब दस माह से यह लंबित है। 


अब खजाने को नुकसान का रोना

नौकरशाहों ने सरकार को यह कहकर भ्रमित किया कि समायोजित कर्मचारियों को यदि राजकीय सेवा के समान हितलाभ दिए गए तो सरकारी खजाने को करोड़ों का नुकसान होगा। जबकि हकीकत ये है कि इससे सरकार पर कोई वित्तीय भार नहीं पड़ रहा था। बल्कि नफा ही हो रहा था। ‘ नई हवा ‘ को जो तथ्य मिले हैं वे तो यही कहानी कह रहे हैं।

जानिए सरकारी खजाने को कैसे होगा नफा?

पुरानी पेंशन स्कीम से सरकार के खजाने पर कोई भार नहीं पड़ेगा। कयोंकि पीएफ व एनपीएस आदि मदों से इन समायोजित कर्मचारियों  क़रीब एक हज़ार करोड़ सरकार को ब्याज सहित मिलेंगे। इनमें करीब 650 करोड़ पीएफ के हैं। जबकि सरकार पर पेंशनर भार केवल 273.55 करोड़ का आ रहा है । इस तरह सरकार को 376.45 करोड़ की बचत हो रही हैत। कर्मचारी इनके चेक सरकार को जमा भी करा चुके हैं। हालांकि सरकार ने इनको भुनाया नहीं है।  इनमें गंगानगर के 52 कर्मचारियों के चेक जरूर सरकारी खजाने में जमा भी हो चुके हैं। इसका मतलब हुआ कि सरकार इनको पुराना कर्मचारी मान चुकी है। अब समायोजित कर्मचारियों की समस्या ये है कि अदालत में मामला अटकाने से उनके दिए चेकों के कारण उनका करोड़ों रुपए ब्लॉक हो चुके हैं।





 

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