गहलोत सरकार की नीयत पर उठे सवाल, चिट्ठी में लिखी खरी-खरी

जयपुर |


 

राजस्थान में कॉलेज शिक्षा के तहत तबादलों को लेकर चल रहे बवाल के बीच विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और भाजपा के वरिष्ठ नेता गुलाबचंद कटारिया ने गुरुवार को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को एक खरी-खरी चिट्ठी लिखी और सरकार की नीयत और कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए और कहा कि सरकार एक पार्टी की तरह काम करना बंद करे। उन्होंने गहलोत को सलाह दी कि वे शासन के मुखिया हैं इस नाते आपसे अपेक्षा है कि एक शिक्षक संगठन के कार्यकर्ता की भांति व्यवहार करने के स्थान पर सबके संरक्षक की तरह राज्य के व्यापक हित में निष्पक्ष निर्णय लें।


यह था मामला 

इसके अनुसार 31 दिसम्बर को कांग्रेस सरकार ने अपने विधायकों की सिफारिश पर करीब 130 कॉलेज शिक्षकों के तबादले किए थे। इनमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा से जुड़े शिक्षक भी बड़ी संख्या में शामिल थे। राज्य की उच्च शिक्षा में ऐसा पहली बार हुआ जब एक दूसरे विभाग के राज्य मंत्री ने दखल देकर सीएमओ ऑफिस में अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर न केवल इस सूची को निरस्त करवा दिया। बल्कि सूची दुबारा बनी और चार जनवरी की आधी रात को संशोधित सूची भी जारी करवा दी और स्थानांतरित स्थानों को फिर बदल दिया। इसमें से आरएसएस की विचारधारा से जुड़े कॉलेज शिक्षकों को चुन-चुन कर वर्तमान पदस्थापन से भी 200-300 किमी दूर फेंक दिया। जबकि  ये शिक्षक अपने गृह निवास से पहले ही 400 से 700 किमी दूर पदस्थापित थे। सरकार ने जो तबादले किए उनके पीछे न कोई आधार था और न कोई तर्क। 

सरकार की चरम असहिष्णुता 
कटारिया ने अपने पत्र में इस सबको बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और सरकार का असहिष्णुता का चरम बताया। उन्होंने कहा कि महाविद्यालय शिक्षा में 31/12/2020 को जारी स्थानान्तरण सूची को इसलिए रोका गया कि रुक्टा नाम के एक शिक्षक संगठन ने उसमें आरएसएस की विचारधारा से जुड़े शिक्षकों के नाम होने का आरोप लगाया था। कटारिया ने कहा शिक्षक संगठनों की आपसी प्रतिस्पर्धा अथवा पंसद या नापंसद हो सकती है लेकिन उच्च शिक्षा मंत्री और मुख्यमंत्री से तो समाज निष्पक्ष एवं व्यापक हित में निर्णय की अपेक्षा करता है। जिस तरह से सीएमओ और उच्च शिक्षा मंत्री की भूमिका इस मामले में निकल कर आई है इससे सम्पूर्ण उच्च शिक्षा क्षेत्र में एक अभूतपूर्व चिंता और गिरावट का माहौल बन गया है।

ऐसे घेरा सरकार को
कटारिया ने अपने पत्र में गहलोत सरकार को यह कहते घेरा कि हो सकता है कि कोई शिक्षक या अधिकारी अपने व्यक्तिगत जीवन में किसी विशिष्ट विचार को मानने वाला हो, परन्तु उसका आकलन उसके कार्य निष्पादन तथा योग्यता की दृष्टि से निष्पक्ष रूप से करने का शासन का दायित्व होता है। परन्तु राजस्थान में  उच्च शिक्षा विभाग में पिछले चार-पांच दिनों में घटे इस घटनाक्रम में राज्य सरकार की भूमिका एक शिक्षक संगठन के पक्ष में बनकर काम करने की ही रह गई। योग्यता अथवा कार्य का सम्मान करने के स्थान पर उत्पीड़न किया गया है। जबकि सरकार ने  आते ही बदले की भावना से कार्य न करने का वादा किया था। उन्होंने कहा कि आपकी सरकार ने जिस तरह का निम्न स्तरीय, शर्मनाक और गरिमाहीन परिदृश्य उच्च शिक्षा विभाग में पैदा किय है उससे ना केवल सरकार की छवि कलंकित हुई है बल्कि शासन द्वारा प्रायोजित इस दुर्भायपूर्ण घटना क्रम से सम्पूर्ण उच्च शिक्षा क्षेत्र भी भय और आंतक के माहौल में हैं।





 

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