‘एडवोकेट को पैनल में शामिल करना बैंक का विवेक, रिट कोर्ट दखल नहीं कर सकता’

याचिका ख़ारिज 

किसी बैंक द्वारा एक वकील को पैनल में शामिल करना संबंधित बैंक के विवेक का मामला है। एक रिट कोर्ट प्राय: इसमें दखल नहीं कर सकता और इसकी गहन जांच नहीं कर सकता।

यह बात कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित की एकल पीठ ने थिम्मन्ना द्वारा दायर एक याचिका को खारिज करते हुए कही। कोर्ट ने कहा कि “सूचीबद्ध करना संबंधित बैंक के विवेक का मामला है; इस तरह के विवेक के प्रयोग में ‘ग्राहक और वकील’ के प्रत्ययी संबंध सहित कई कारक शामिल हैं; इस तरह के मामलों में एक रिट कोर्ट आमतौर पर हस्तक्षेप नहीं कर सकता है और  जांच नहीं कर सकता है।”

कोर्ट में याचिकाकर्ता के वकील का तर्क था कि ग्राहक को पैनल (यूनियन बैंक ऑफ इंडिया) पर और बिना किसी पूर्व सूचना के अचानक बंद नहीं किया जा सकता और इस प्रकार 27 सितंबर के संचार को रद्द करने की मांग की।

इस पर अदालत ने कहा, “आक्षेपित आदेश के टेक्स्ट को याचिकाकर्ता को एक पेशेवर के रूप में कलंक लगाने के रूप में नहीं माना जा सकता, बैंक ने अपनी पसंद के वकीलों को पैनल में रखने और याचिकाकर्ता को पैनल में नहीं रखने के अपने विशेषाधिकार का प्रयोग किया है; इस तरह एक्सरसाइज को दोष नहीं दिया जा सकता, सभी अपवादों के अधीन जिसमें याचिकाकर्ता का तर्कपूर्ण मामला फिट नहीं होता है।” इसलिए  रिट याचिका योग्यता से रहित होने के कारण खारिज किए जाने योग्य है।

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