अड़चन दूर तो अब ‘प्रशासन शहरों के संग’ अभियान में पट्टा जारी करे सरकार

भरतपुर

[DISPLAY_ULTIMATE_SOCIAL_ICONS]

भरतपुर की कच्चा परकोटा नियमन संघर्ष समिति के  एक प्रतिनिधिमंडल ने  25 जनवरी को जयपुर में स्वायत शासन विभाग के संयुक्त सचिव एवं निदेशक को  एक ज्ञापन दिया और मांग की कि प्रदेश भर में प्रस्तावित ‘प्रशासन शहरों के संग अभियान के दौरान ही भरतपुर शहर के चारों ओर स्थित कच्चे डण्डे (परकोटे) की भूमि पर काबिज लोगों को पट्टे  दिलाए जाएं। समिति के नेताओं ने कहा कि भरतपुर नगर निगम पट्टा जारी करने की सिफ़ारिश राजस्थान सरकार को भेज चुका है। अब इस परकोटे पर आबाद करीब दो हजार लोगों को पट्टा जारी करने की कोई अड़चन बाकी नहीं बची है। संघर्ष समिति के नेताओं ने इसके पक्ष में अब तक हुईं सरकारी कार्रवाई के दर्जनों दस्तावेज भी निकाय विभाग के संयुक्त सचिव एवं निदेशक को सौंपे।

प्रतिनिधिमंडल में नगर निगम भरतपुर के महापौर अभिजीत कुमार, संघर्ष समिति के संयोजक जगराम धाकड़, कैप्टन प्रताप सिंह, मान सिंह मास्टर, राजवीर चौधरी, भगवान सिंह, समुंदर सिंह, जगदीश खंडेलवाल एवं पूर्व नेता प्रतिपक्ष इंद्रजीत भारद्वाज आदि शामिल थे।


परकोटा नियमन संघर्ष समिति ने जयपुर जाकर स्वायत्त शासन विभाग को सौंपा ज्ञापन  


संघर्ष समिति के नेताओं का कहना था कि प्रदेश भर के आमजन को त्वरित गति से पट्टे देने में राहत प्रदान करने के उद्देश्य से राज्य सरकार द्वारा तीन एक्सपर्ट कमेटियों का गठन किया गया है। जो प्रशासन शहरों के संग अभियानों में शामिल किए जाने वाले विषयों को लेकर विभिन्न बाईलाजों एवं नियमों का अध्ययन कर उसमें संशोधन कर 5 फरवरी 2021 को अपनी रिपोर्ट प्रेषित करेंगी। अत: इस अभियान के दौरान ही भरतपुर के इस परकोटे के लोगों को भी पट्टे जारी किए जाएं।

यह है परकोटे का इतिहास
भरतपुर के चारों ओर लगभग 9 किलोमीटर लंबा और 200 से 250 फुट चौड़ा मिट्टी के कच्चे परकोटे का निर्माण 250 वर्ष पूर्व भरतपुर रियासत के संस्थापक ने अन्दर बने किले एवं आबादी को बाहरी दुश्मनों तथा बाढ़ के पानी से सुरक्षा करने के उद्देश्य से बनाया था। उसमें शहर के अन्दर आने-जाने के लिए ग्यारह बड़े-बड़े दरवाजे बनाए गए थे।  देश की आजादी के बाद राजस्थान सरकार ने 12 दिसम्बर, 1968 को कच्ची चार दीवारी (परकोटे) को पुरावशेष मानकर सुरक्षित घोषित किया था। 

ऐसे बिगड़ता गया परकोटे का रूप
यह है कि वर्ष 1955 से 1980 तक नगर परिषद, भरतपुर (अब नगर निगम) ने  इस परकोटे पर 260 व्यक्तियों को जमीन विक्रय कर पट्टा देकर जमीन दी गई। जिस पर उन्होंने मकान बना लिए। इसके बाद तो अन्य लोगों ने भी इस पर अवैध निर्माण कर लिए। वर्तमान में इनकी संख्या 1700 से 2000 बताई जा रही है। इसके बाद 20.02 2001 में इस परकोटे को नष्ट प्राय: बताते हुए  कच्ची चारदीवारी में बने रियासतकालीन दरवाजों को ही संरक्षित रखा गया। और जिला कलेक्ट्रेट भरतपुर को पत्र के माध्यम से कच्चे डण्डे पर अतिक्रमणों की सूची सुपुर्द की गई। इसके बाद इस पर आबाद लोगों द्वारा उन्हें पट्टा देने की मांग उठी। इस पर परकोटा  की भूमि को नगर परिषद् भरतपुर को नियमन कराने के उद्देश्य से हस्तांतरित कर दी गई। पुरातत्व विभाग ने अनापत्ति भी जारी कर दी।

पट्टा जारी करने की ऐसे बनते बिगड़ती रही बात
इसके बाद नियमन करने हेतु नगर परिषद, भरतपुर द्वारा टोटल स्टेशन सर्वे कराकर नक्शे एवं अतिक्रमणों की सूची तैयार कराई गई। लेकिन आगामी नियमन की कार्यवाही नहीं हो सकी। जबकि राजस्थान सरकार भरतपुर शहर के कच्चे डण्डे पर आवासीय/व्यवसायिक भू-खण्डों का पट्टा जारी करने के सम्बन्ध में नगर निगम भरतपुर को अपने स्तर पर कार्यवाही कर आवासीय भवन/भूमि का पट्टा जारी करने की कह चुकी थी। 

इसके बाद भी निगम अधिकारी गलत व मनगढ़न्त सूचना देकर सरकार से मार्ग दर्शन मांगते रहे। इस पर कच्चा परकोटा नियमन संघर्ष समिति द्वारा आपत्ति दर्ज कराई गई। इस पर आयुक्त नगर निगम ने तथ्यों की जांच कराकर तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी गई।

18.01.2021 को टीम के साथ मौका देखा गया। नियमन करने के आवेदन भी ले लिए गए। वे सभी लम्बित पड़े हैं। वर्ष 2018-2019 में जिला प्रशासन द्वारा कच्चे डण्डे की भूमि के अलावा जल बहाव, जल भराव क्षेत्र तक कच्चे डण्डे के सहारे-सहारे 20 फुट चौड़ी एप्रोच का निर्माण कराया जाकर सी.एफ.सी.डी. व कच्चे डण्डे की सीमा तय कर दी गई। कच्चा डण्डा कभी भी जल बहाव, जल भराव क्षेत्र का नहीं रहा हैं। 

नगर निगम, भरतपुर 22 जनवरी को पट्टा देने का कार्य प्रारम्भ करने का प्रस्ताव पारित कर सरकार को भेज दिया। अब लोगों की मांग है कि प्रशासन शहरों के संग अभियान में ही उन्हें पट्टा दिए जाएं। लगभग 40-50 वर्षों से लगातार कच्चे डण्डे पर काबिज लोग नगर निगम, भरतपुर राज्य सरकार से पट्टा देने की मांग को लेकर आन्दोलनरत है लेकिन इन 2000 हजार परिवार के लोगों को पट्टे नही दिए जा रहे।





 

प्रतिक्रिया देने के लिए ईमेल करें  : ok@naihawa.com

 


SHARE THIS TOPIC WITH YOUR FREINDS