हार गया ‘GUN तंत्र ‘
इन चुनावों से एक और साफ संकेत गया। आजादी के बाद यह पहला चुनाव था जिसमें खून का एक कतरा भी नहीं बहा। 4181 उम्मीदवार मैदान में उतरे। इनमें 450 महिलाएं थीं। धारा -370 हटने के बाद गुपकार से जुड़े पारिवारिक दलों ने जो डर दिखाया था वह जम्मू-कश्मीर के इन चुनावों में कहीं नहीं दिखा। कह रहे थे कि तिरंगे की नीचे चुनाव नहीं लड़ेंगे । लेकिन वे चुनाव लड़ने को मजबूर हुए। विकास के मुद्दे ही हावी रहे। यही जम्मू – कश्मीर की आवोहवा बदलने के संकेत हैं।
चुनाव लड़ना बन गई थी मजबूरी
गुपकार से जुड़े इन पारिवारिक दलों के चुनाव लड़ने की एक और बड़ी वजह थी। डीडीसी चुनाव के चार लेयर थे। एक सबसे बड़ी निर्दलीय कैटगरी थी। यह ग्रासरूट पॉलिटिक्स की देन थी। इसीलिए अपने को बचाने के लिए गुपकार से जुड़े दलों की चुनाव लड़ने की मजबूरी हो गई क्योंकि चुनाव नहीं लड़ते तो उनकी अपनी जमीन छिनने वाली थी। यह भाजपा का साइड इफेक्ट था कि सात दलों को मिलना पड़ा। ये पारिवारिक दल जनता को बेवकूफ बनाकर कार्य करते थे।
जम्मू-कश्मीर में बड़ी संख्या में निर्दलीयों के चुनाव लड़ने और बड़ी तादाद में जीतने से अब स्थानीय नेता पैदा होंगे और पारिवारिक दलों का वर्चस्व खत्म होगा। पाक परस्त नेताओं के दरवाजे बंद होंगे। अलगाव का अध्याय भी समाप्त होगा।