‘भारत का भविष्य गढ़ रहा हूं, शिक्षकों में ऐसी सोच होनी चाहिए’

नई दिल्ली 


अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के अभ्यास वर्ग में डॉ. मनमोहन वैद्य का उद्बोधन


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. मनमोहन वैद्य ने कहा कि विद्यार्थियों के माध्यम से भारत का भविष्य गढ़ रहा हूं, शिक्षकों में ऐसी सोच होनी चाहिए। शिक्षक का कार्य भारत को अध्यात्म आधारित समाज का निर्माण करना है। साथ ही नवाचारों से युक्त दृष्टिकोण रखते हुए भविष्य की संकल्पना हेतु विद्यार्थियों को प्रेरित करते रहना है। केवल किताबी ज्ञान पर्याप्त नहीं है।

डॉ. मनमोहन वैद्य ‘भारतीय शिक्षा पद्धति की महत्ता’ विषय पर अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ द्वारा आभासी पटल पर सम्पन्न दो दिवसीय अखिल भारतीय कार्यकर्ता अभ्यास वर्ग के समापन सत्र को सम्बोधित कर रहे थे। डॉ. मनमोहन वैद्य ने अपने उद्बोधन में ‘भारतीय शिक्षा पद्धति की महत्ता’ विषय पर अनेक जीवंत उदाहरण प्रस्तुत किए।

डॉ. मनमोहन वैद्य ने कहा कि पाश्चात्य शिक्षा पद्धति ने व्यक्ति को स्वार्थी और धन की तरफ देखने वाला बना दिया है। वहीं भारतीय दृष्टिकोण वसुधैव कुटुंबकम का रहा है। डॉ. मनमोहन वैद्य ने बताया कि  इस तरह के अभ्यास वर्ग के माध्यम से कार्यकर्ता उपलब्ध साधनों से अच्छा करने एवं अपने कार्य में रचनात्मकता लाने का प्रयास करता है। शिक्षक विद्यार्थियों में अच्छे भाव संप्रेषित कर भविष्य की एक अच्छी नींव रखते हुए नई पीढ़ी का निर्माण कर सकेंगे।

11 जून को शुरू हुए अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के दो दिन के इस अभ्यास वर्ग में प्रथम दिन प्रस्तावना अ. भा. प्रशिक्षण प्रकोष्ठ प्रमुख डॉ.बसंत शेखर चंद्रात्रे ने रखते हुए अभ्यास वर्ग की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। वर्ग के प्रथम सत्र में ‘हमारा वैचारिक अधिष्ठान’ विषय पर प्रो. अनिरुद्ध देशपांडे ने कहा कि हमारी शिक्षा व्यवस्था में छात्र एक केंद्र बिंदु है और उसी को ध्यान में रख कर हमारा कार्य है। संगठन की रचना में व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, क्योंकि व्यक्ति बहुत श्रेष्ठ है, विचार बहुत श्रेष्ठ हैं, लेकिन संगठन श्रेष्ठ नहीं है तो सब बेकार है। हमारा संगठन कार्यकर्ता आधारित संगठन है, इसलिए कार्यकर्ताओं की सम्हाल करना, कार्यकर्ताओं का विकास करना हमारा प्रमुख कार्य है। इसीलिए इस प्रकार के अभ्यास वर्गों की नितांत आवश्यकता है।

द्वितीय सत्र में ‘कार्य पद्धति’ विषय पर महासंघ के अ. भा.उच्च शिक्षा प्रभारी महेंद्र कुमार ने कहा कि हमारे वैचारिक अधिष्ठान में कोई परिवर्तन नहीं हो सकता और इसी वैचारिक अधिष्ठान को प्राप्त करने के लिए कार्यकर्ता और कार्य पद्धति महत्वपूर्ण है। कार्यपद्धति कार्यकर्ताओं के विकास का एक माध्यम है। कार्यकर्ता तो बदलते रहते हैं, इसलिए कार्यपद्धति के ज्ञान हेतु इस प्रकार के अभ्यास वर्ग आवश्यक हैं। कार्यपद्धति में हमारी बैठकों का प्रकार, सामूहिकता की भावना, कार्यक्रमों के प्रकार, अनौपचारिक बातचीत, औपचारिक एवं अनौपचारिक प्रवास आदि महत्वपूर्ण हैं।

तृतीय सत्र में ‘कार्यकर्ता’ विषय पर अ. भा. संगठन मंत्री महेन्द्र कपूर ने कहा कि कार्यकर्ता ही किसी संगठन के आधार स्तम्भ होते हैं। कार्यकर्ताओं से ही संगठन की पहचान होती है। कार्यकर्ता को अनुशासनप्रिय तथा अपने संगठन के ध्येय के लिए समय देने वाला होना चाहिए। पारदर्शी व्यवहार, आर्थिक सुचिता, धैर्य और संयम, कार्य के प्रति समर्पण, कथनी और करनी में समानता, संगठन सर्वोपरि की भावना, देश काल और परिस्थिति अनुसार निर्णय लेने की क्षमता, स्वयं के प्रति कठोर एवं अन्य के प्रति उदार यह सब एक अच्छे कार्यकर्ता के गुण हैं।

संगठन की प्रभावी टोली आवश्यक: प्रो. जे. पी. सिंघल
अभ्यास वर्ग के दूसरे दिन चतुर्थ सत्र में महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो.जे. पी. सिंघल ने बताया कि किसी भी संगठन को चलाने हेतु एक प्रभावी टोली का होना अत्यंत आवश्यक है। इस प्रभावी टोली के निर्माण हेतु संगठन के सदस्यों में एकरूपता एवं सदस्य को संगठन की गहराई से जानकारी होना बहुत जरूरी है। संगठन के सदस्यों को दृढ़ संकल्पित होकर समय पर कार्य को संपन्न करना बहुत जरूरी है। कार्य संपन्न करने के पश्चात कार्य की समीक्षा करना आवश्यक है, जिससे यह पता चल सके कि कहां कमियां रह गई हैं और भविष्य में उनको दूर किया जा सके। प्रो. सिंघल ने बताया कि टीम परिणाम देने वाली होनी चाहिए और उसमें उद्देश्य की स्पष्टता, टीम को प्रभावी बनाने हेतु आवश्यक सुझाव, सतत संप्रेषण, रचनात्मकता एवं समर्पण का भाव होना बेहद जरूरी है।

पाश्चात्य विचार ने किया भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात: ओमपाल
सिंह पंचम सत्र में महासंघ के अभा सह संगठन मंत्री ओमपाल सिंह ने ‘भारतीय शिक्षा दर्शन में शिक्षक की भूमिका’ पर बोलते हुए बताया कि वैदिक काल से लेकर वर्तमान समय तक गुरु की महत्ता रही है। लेकिन वर्तमान में गुरु को शिक्षक के नाम से जाना जाता है। स्वाधीनता के बाद भारत की संस्कृति से संबंध न रखने वाला पाश्चात्य विचार आया जिसने हमारी भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात किया।  पाठशाला के शिक्षक एवं संगठन में कार्य करने वाले शिक्षक दोनों की भूमिकाएं अलग अलग होती है। विज्ञान की वर्तमान में खोज हमारी संस्कृति में पहले से ही वर्णित है पुरातन समय में शिक्षक समाज के प्रति प्रतिबद्ध होते थे वहीं वर्तमान में परिस्थितियां बदल गई हैं, इसे सिंहावलोकन करने की आवश्यकता है। सभी शिक्षकों को मिल-जुलकर संगठन में काम करना चाहिए एवं सद्विचार लगातार चलते रहना चाहिए अनेक उदाहरणों से उन्होंने स्पष्ट किया।

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सभी सत्रों में वक्ताओं ने प्रतिभागियों की जिज्ञासाओं का समाधान भी किया।वर्ग का शुभारंभ श्रीमती ममता डी के की सरस्वती वंदना एवं देव कृष्ण व्यास के संगठन गीत से तथा समापन संजय कुमार राउत द्वारा कल्याण मंत्र से किया गया। अभ्यास वर्ग में देश भर से लगभग 200 कार्यकर्ता उपस्थित रहे।




 

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