बाल लघु कथा

डॉ. अलका अग्रवाल, सेवानिवृत्त कॉलेज प्राचार्य
एक स्कूल में प्रार्थना सभा चल रही थी। हेड मास्टर साहब ने प्रातः अनन्या का नाम पुरस्कार हेतु घोषित किया। अनन्या को समझ में नहीं आया, उसे क्यों बुलाया जा रहा है? उसने तो ऐसा कोई काम नहीं किया। हैड मास्टर साहब ने सब बच्चों को संबोधित करते हुए कहा, ‘कल मैंने तुम्हें कहा था कि हमें असहाय लोगों की मदद करनी चाहिए। मैं यह देखना चाहता था कि क्या बच्चे मेरी बात एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देते हैं?
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इसलिए जब शाम को बच्चे स्कूल के पास वाले मैदान में खेल रहे थे, मैंने आंखों पर काला चश्मा लगाकर दाढ़ी लगाई, शॉल ओढ़ा और खेल के मैदान के पास वाली सड़क पार करने के लिए खड़ा हो गया। शायद मेरी ओर किसी का ध्यान ही नहीं गया, इसलिए मैंने बच्चों से सड़क पार कराने के लिए कहा। पर सभी बच्चे खेलने में इतने मस्त थे कि उन्होंने ध्यान ही नहीं दिया।
लेकिन अनन्या बोली, ‘हमें बाबा की मदद करनी चाहिए। सुबह ही तो सर ने बताया था। किसी के साथ आने की परवाह ना करते हुए उसने आदर और प्यार से मेरा हाथ पकड़ कर सड़क पार करा दी। शाबाश अनन्या, तुम इस पुरस्कार की सच्ची हकदार हो। सब बच्चों ने खूब तालियां बजाईं। अनन्या आज हीरो बन गई थी।
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