मधुमास
डा.अंजीव अंजुम
ईंट पत्थरों की युति पर, अब सुलग रहा मधुमास है।
नग्न चिंतनों में लिपटी हर, देह मिली संत्रास है।।
रिश्तों में भटकाव है इतना,
आज थके संबोधन सारे।
धूप बांटते अपने हिस्से,
द्वार, देहरी, आंगन न्यारे।।
आंखों में आंसू ले बैठा, बूढ़ा वह आवास है।
ईंट पत्थरों की युति पर, अब सुलग रहा मधुमास है।
चूल्हों के अब मुंह बंद है,
लकड़ी मुंह को फाड़ खड़ी।
कालचक्र में पल-पल पिसती,
चक्की टूटी हुई पड़ी।
वृद्ध ओखली को चौके से, मिला आज सन्यास है।
ईंट पत्थरों की युति पर अब, सुलग रहा मधुमास है।।
पंचभूत का मालिक हुक्का,
फंसा पड़ा अब काँटों में।
शेरे और पाटियों की है,
आज लड़ाई खाटों में।
छोटे पीढे, मुढ्ढों का अब ,खत्म हुआ इतिहास है।
ईंट पत्थरों की युति पर अब, सुलग रहा मधुमास है।।
हृदय बंधे अब सिल-बटना भी,
एक दूजे से दूर पड़े।
चिमटा फुँकनी टौसा सारे,
नव विकास की भेंट चढ़े।
घर की सभी तिखालों पर अब, कालिख का उपहास है।
ईंट पत्थरों की युति पर अब, सुलग रहा मधुमास है।।
घर की गईया खोल चुकी है,
अब खूँटे के बंधन को।
चौबारे का सूखा पीपल,
लौटाता खुद सावन को,
आंगन में तुलसी का बिरवा, गुमसुम और हताश हैं।
ईंट पत्थरों की युति पर अब, सुलग रहा मधुमास है।।
(लेखक प्रधानाध्यापक एवं राजस्थान ब्रजभाषा अकादमी जयपुर की पत्रिका ब्रजशतदल के सहसंपादक हैं )
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