लोक अभियोजकों और सरकारी वकीलों पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त फटकार – भाई-भतीजावाद से भरी नियुक्तियां नहीं चलेंगी, अब मेरिट ही होगी मापदंड | जानिए क्या है पूरा मामला

नई दिल्ली 

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने राज्यों में हाई कोर्ट (High Court) के सरकारी वकीलों (Government Pleaders) और लोक अभियोजकों  (Public Prosecutors) की नियुक्तियों में भाई-भतीजावाद और फेवरिज्म पर सख्त नाराजगी जताई है। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि ये नियुक्तियां सिर्फ मेरिट के आधार पर होनी चाहिए, न कि राजनीतिक कृपा से। जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने कहा कि सरकारी वकीलों के स्तर का यह हाल होना बेहद चिंताजनक है।

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कमजोर पैरवी से निर्दोष बना दोषी, हरियाणा सरकार को देना होगा मुआवजा
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट (Punjab and Haryana High Court) में एक मामले की सुनवाई के दौरान पाया कि लोक अभियोजक ने बेहद लापरवाही भरी पैरवी की, जिसके चलते बरी किए गए आरोपी को गलत तरीके से दोषी ठहरा दिया गया। कोर्ट यह देखकर चौंक गया कि हाई कोर्ट ने एक रिविजन याचिका (revision petition) में ट्रायल कोर्ट के बरी (acquittal) के फैसले को पलट दिया, जो कि कानूनी रूप से अवैध है। रिविजन याचिका के माध्यम से बरी किए गए व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। कोर्ट ने यह देखकर और भी हैरानी जताई कि अभियोजक ने कानूनी खामियों को उजागर करने की बजाय, सीधे आरोपी को मौत की सजा देने की मांग कर दी। जबकि राज्य सरकार ने बरी किए जाने के खिलाफ कोई अपील ही दायर नहीं की थी। इस घोर लापरवाही पर सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार को सख्त आदेश दिया कि वह गलत तरीके से दोषी ठहराए गए तीन अपीलकर्ताओं को 5-5 लाख रुपये मुआवजा दे।

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लोक अभियोजकों का काम न्याय दिलाना है
कोर्ट ने कहा कि लोक अभियोजक केवल जांच एजेंसी का हिस्सा नहीं होता, बल्कि एक स्वतंत्र और निष्पक्ष पदाधिकारी होता है। उन्हें न्यायिक प्रणाली की गरिमा बनाए रखने के लिए नियुक्त किया जाता है, न कि राजनीतिक नेताओं की कृपा पाने के लिए। आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CRPC) के तहत उसे कुछ विशेष अधिकार और कर्तव्य सौंपे गए हैं। राज्य सरकार का कर्तव्य है कि वह नियुक्त व्यक्ति की योग्यता, उसकी कानूनी दक्षता, उसकी पृष्ठभूमि और उसकी ईमानदारी की जांच करे।

अब ऐसे लापरवाह सरकारी वकील नहीं बचेंगे
इस फैसले से साफ हो गया है कि अब राज्यों में हाई कोर्ट के सरकारी वकीलों और लोक अभियोजकों की नियुक्ति सिर्फ मेरिट के आधार पर ही होगी। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सरकारों को साफ संदेश देता है कि अब भाई-भतीजावाद से भरी नियुक्तियों का दौर खत्म होना चाहिए।

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