वकीलों को नोटिस भेजने पर सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी | कहा – जांच एजेंसियों द्वारा सीधे बुलाना न्याय की स्वतंत्रता के लिए खतरा

नई दिल्ली 

जांच एजेंसियों और पुलिस द्वारा वकीलों को सीधे सम्मन या नोटिस जारी किए जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता जताई है। एक मामले में सुनवाई के दौरान अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी मामले में सलाह देने वाले बचाव पक्ष के वकीलों को एजेंसियों द्वारा सीधे बुलाना न केवल कानूनी पेशे की स्वायत्तता को कमजोर करता है, बल्कि यह न्याय प्रशासन की स्वतंत्रता के लिए सीधा खतरा भी बन सकता है।

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जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने यह टिप्पणी गुजरात के एक मामले की सुनवाई के दौरान की, जिसमें हाईकोर्ट द्वारा एक वकील को पुलिस के सामने पेश होने के निर्देश को चुनौती दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने तय किए दो अहम सवाल

कोर्ट ने मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए इस पर गहन विचार की आवश्यकता जताई है और दो प्रमुख प्रश्न सामने रखे हैं:

  • यदि वकील किसी पक्षकार को सिर्फ सलाह दे रहा हो, तो क्या जांच एजेंसी या पुलिस को उसे सीधे बुलाने का अधिकार है?

     

  • अगर वकील की भूमिका सिर्फ कानूनी सलाहकार से आगे बढ़ती हो, तब भी क्या उसे सीधे सम्मन किया जाना चाहिए या ऐसे मामलों में न्यायिक निगरानी जरूरी है?

कोर्ट ने कहा कि इन दोनों प्रश्नों पर व्यापक दृष्टिकोण से विचार किया जाना जरूरी है, क्योंकि इससे वकीलों की पेशेवर निडरता और न्याय व्यवस्था की प्रभावकारिता सीधे प्रभावित होती है।

महत्वपूर्ण हस्तक्षेप की आवश्यकता

पीठ ने इस मुद्दे पर विचार करते हुए कहा कि वह अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन के अध्यक्ष विपिन नायर से मार्गदर्शन लेगी।

कोर्ट ने कहा, “किसी पेशेवर को… जब वह मामले में वकील हो… सीधे हिरासत में लेना प्रथम दृष्टया अनुचित लगता है।”

गुजरात के वकील को अंतरिम राहत

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल उस वकील को अंतरिम राहत दी है, जिसे गुजरात पुलिस ने सम्मन भेजा था। कोर्ट ने 12 जून को हाईकोर्ट द्वारा दिए गए आदेश पर भी रोक लगाई और कहा कि वकील को जारी सभी नोटिस व सम्मनों के क्रियान्वयन पर स्थगन रहेगा। इसके साथ ही गुजरात सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया है।

कोर्ट ने मामले के महत्व को देखते हुए इसे चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के समक्ष उचित निर्देश के लिए प्रस्तुत करने को कहा है।

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पृष्ठभूमि: ईडी के सम्मन से शुरू हुआ विवाद

गौरतलब है कि हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दत्तार और प्रताप वेणुगोपाल को एक जांच के सिलसिले में सम्मन जारी किए थे। इस पर वकीलों की विभिन्न एसोसिएशनों ने प्रबल विरोध दर्ज कराया और चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की थी। इसके बाद ईडी ने अपना सम्मन वापस ले लिया और वकीलों को सम्मन व नोटिस भेजने के मुद्दे पर एक सर्कुलर भी जारी किया।

✅ निष्कर्ष:

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी न केवल कानूनी पेशे की गरिमा को बचाने का प्रयास है, बल्कि यह सुनिश्चित करने की दिशा में भी एक कदम है कि वकीलों को स्वतंत्र, निडर और निष्पक्ष तरीके से अपने पेशेवर दायित्व निभाने का पूरा अवसर मिले — बिना दबाव और बिना भय के।

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