नई दिल्ली
39 साल की लंबी कानूनी लड़ाई, 11 जजों का बदलाव और दो आरोपियों की मौत के बाद आखिरकार अदालत ने फैसला सुना दिया। 1984-85 में हुए पंजाब एंड सिंध बैंक (Punjab and Sindh Bank) धोखाधड़ी मामले में 78 वर्षीय एसके त्यागी को ‘कोर्ट के उठने तक’ की सजा दी गई। यह वही मामला है, जिसकी सुनवाई शुरू होने से पहले के समय में मौजूदा जज दीपक कुमार सिर्फ 2 साल के थे।
क्या था मामला?
1984-85 में पंजाब एंड सिंध बैंक की एक शाखा में गलत क्रेडिट एंट्री और बिना बैलेंस वाले खातों से चेक क्लियर कर लाखों रुपये की धोखाधड़ी की गई थी। 1986 में बैंक के रीजनल मैनेजर और चीफ विजिलेंस ऑफिसर ने इसकी शिकायत दर्ज कराई, जिसके बाद सीबीआई ने मामला अपने हाथ में लिया।
सीबीआई ने 13 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की और 2001 में आरोप तय किए गए। एसके त्यागी पर धारा 420 (धोखाधड़ी), 468 (जालसाजी), 477-ए (खातों में हेराफेरी) और 120-बी (आपराधिक साजिश) के तहत मुकदमा चला। लेकिन फिर मामला सालों तक धूल फांकता रहा।
39 साल की देरी क्यों हुई?
- जजों की अदला-बदली: पिछले 5 साल में यह केस 11 जजों के पास गया।
- रिकॉर्ड्स की गड़बड़ी: 2001 से 2019 तक मामले में कोई ठोस प्रगति नहीं हुई, आधे रिकॉर्ड्स गायब थे।
- आरोपियों की मृत्यु: केस के चार आरोपियों में से दो की मौत हो चुकी है।
कैसे आया अंतिम फैसला?
2019 में केस को राउज एवेन्यू कोर्ट में ट्रांसफर किया गया। 24 जनवरी 2024 को एसके त्यागी ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया। उन्होंने अदालत को बताया कि वह 78 साल के हैं, उनकी पत्नी पार्किंसन रोग से पीड़ित हैं और उन्होंने बैंक से लिया गया पैसा वन-टाइम सेटलमेंट (OTS) के तहत चुका दिया है।
न्यायाधीश दीपक कुमार ने त्यागी के पश्चाताप को देखते हुए उन्हें “कोर्ट के उठने तक” की सजा दी, जिसका मतलब था कि उन्हें सिर्फ अदालत बंद होने तक हिरासत में रहना होगा। इसके साथ ही, प्रत्येक अपराध के लिए 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया।
इतना लंबा इंतजार… और फिर कुछ घंटे की सजा!
कानूनी प्रक्रिया की धीमी चाल पर यह केस बड़ा सवाल खड़ा करता है। 39 साल का इंतजार, 11 जज बदले, दो आरोपी मर गए और फिर अंत में सिर्फ “कोर्ट के उठने तक” की सजा! यह मामला भारतीय न्याय प्रणाली में तेजी और पारदर्शिता की जरूरत को उजागर करता है।
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