दो हजार साल पुराने जैन मंदिर का हो रहा जीर्णोद्धार, 24 तीर्थंकरों की होगी स्थापना

विष्णु मित्तल 

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हलैना (भरतपुर) | जैन समाज का एक प्राचीन गांव जिसे मुगलों और अन्य विदेशी आक्रांताओं ने तहस-नहस कर दिया था, वहां अब 24 तीर्थंकरों की स्थापना हो रही है। इसके लिए समाज ने एक ट्रस्ट बना रखा है जिसकी निगरानी में मंदिर का जीर्णोद्धार सहित अनेक कार्य हो रहे हैं।



विश्व के प्रसिद्व जैन मन्दिरों की सूची में शामिल है मंदिर


जैन समाज का एक प्राचीन गांव जिसे मुगलों और अन्य विदेशी आक्रांताओं ने तहस-नहस कर दिया था, वहां अब 24 तीर्थंकरों की स्थापना हो रही है। इसके लिए समाज ने एक ट्रस्ट बना रखा है जिसकी निगरानी में मंदिर का जीर्णोद्धार सहित अनेक कार्य हो रहे हैं।

भरतपुर जिले के उपखण्ड वैर के गांव सिरस स्थित करीब दो हजार साल पुराना यह जैन तीर्थ स्थल विश्व के प्रसिद्व जैन मन्दिरों की सूची में शामिल है। श्रीश्वेताम्बर जैन तीर्थ नाम से इस आस्था स्थल पर देश-विदेश से समाज के लोग आते रहते हैं। इसी मंदिर में 24 तीर्थंकरों की स्थापना का बीडा समाज ने उठा रखा है। साल में यहां पर अनेक उत्सव और मेला व अन्य धार्मिक कार्यक्रम चलते रहते हैं।  इस मंदिर में कलिकाल कल्पतरू भगवान श्री महावीर जी की प्रतिमा विराजमान है। जैन समुदाय के अलावा अन्य धर्म के लोग भी इसके दर्शन को आते हैं।


ये जैन तीर्थकर होंगे विराजमान
निर्माणाधीन 24 तीर्थंकर जैन मन्दिर पर भगवान श्री महावीर जी के अलावा अब तीर्थंकर ऋषभदेव, अजितनाथ, सम्भवनाथ, अभिनंनदन, सुमतिनाथ, पद्यमप्रभु, सुपाश्र्वनाथ, चन्द्रप्रभु, सुविधिनाथ, शीतलनाथ, श्रेयांसनाथ, वासुपूज्य, विमलनाथ, अनंतनाथ, धर्मनाथ, शान्तिनाथ, कुंथनाथ, अरनाथ, मल्लिनाथ, मुनिसुव्रत, नमिनाथ, अरिष्टनेमि, पाश्र्वनाथ की प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा होगी।


बंसी पहाड़पुर के पत्थर से बन रहा मन्दिर
मंदिर के जीर्णोद्धार एवं निर्माण में भरतपुर जिले के विश्व विख्यात बयाना-रूपवास उपखण्ड के बंसी पहाड़पुर का पत्थर इस्तेमाल हो रहा है। 1986-87 से आज तक लगातार पत्थर को तराशने एवं निर्माण जारी है। अब मन्दिर पर भगवान श्रीमहावीर जी के अलावा जैन समुदाय के 24 तीर्थकर भगवान की प्रतिमाएं स्थापित होंगी।


विदेशी शासकों ने किया परेशान
गांव सिरस के गणमान्य ओमप्रकाश शर्मा एवं रामप्रसाद धाकड़ ने बताया कि गांव सिरस प्राचीनकाल से जैन समाज का रहा है। गांव के बुर्जुग? लोग बताते थे कि हजारों साल पहले विदेशी एवं मुगल वंश के शासकों के भय के कारण जैन समाज के अनेक परिवार गांव से पलायन कर गए। गांव में आज एक भी परिवार जैन समाज का नहीं रहता है। जबकि पड़ौसी गांव हलैना, मूडियासाद,मौलोनी,वैर,खेरलीगंज आदि में जैन समाज रहता है।


 




भाई-बहिन के प्रेम का प्रतीक
गांव सिरस का जैन मन्दिर भाई-बहिन के प्रेम का प्रतीक कहलाता है,जिसका आज भी गुणगान होता है। ट्रस्ट के अध्यक्ष महावीरप्रसाद जैन एवं उपाध्यक्ष बाबूलाल जैन ने बताया कि संवत 1828 में भरतपुर रियासत के तत्कालीन महाराजा के दीवान रहे अलवर जिले के गांव हरसाणा निवासी दीवान जोधराज पल्लीवाल अपनी बहिन से सर्वाधिक  लगाव रखते थे। एक बार दीवान पल्लीवाल गांव सिरस में बहिन से मिलने आए। जिन्होंने भगवान महावीर जी की प्रतिमा के दर्शन किए,जो एक चबूतरा पर विराजमान थी। दीवान पल्लीवाल ने बहिन के आग्रह पर गांव के लोगों को एकत्रित कर मन्दिर निर्माण कराया और प्रतिमा की प्रतिष्ठा कराई। जैन समुदाय सहित अन्य ग्रामीण आज भी पुराने मन्दिर को भाई-बहिन के प्रेम का प्रतीक वाला मन्दिर कहते हैं।

खुदाई में मिली थी प्रतिमा
मन्दिर में विराजमान भगवान कलिकाल कल्पतरू भगवान महावीर की प्रतिमा को लेकर अनेक किवदंतियां हैं । हिण्डौन निवासी महावीरप्रसाद जैन एवं बाबूलाल जैन ने बताया कि करीब 300 साल पहले गांव सिरस निवासी एक प्रजापत परिवार मिट्टी के बर्तन बनाने को पोखर से मिट्टी निकाल रहा था, उसी समय यह प्रतिमा मिली। उसे गांव के लोगों ने चबूतरा पर विराजमान करा दिया और पूजा-अर्चना करते रहे।

कई बार चोरी हुई प्रतिमा
ट्रस्ट के उपाध्यक्ष बाबूलाल जैन ने बताया कि मन्दिर में प्रतिमा को चोरी करने में कई बार प्रयास हुए । पर असफल रहे। चार बार प्रतिमा चोरी भी हो गई,लेकिन चमत्कार ऐसा कि चोर प्रतिमा को वापिस छोड़ गए। । आमजन में धारणा है कि जो चोरी करने में सफल हुए,लेकिन प्रतिमा की शक्ति एवं चमत्कार को देख झुक गए और प्रतिमा को वापिस छोड़ गए। 1970,1980 एवं 1986 में प्रतिमा चोरी हुई। अन्तिम चोरी 25 नवम्बर 1986 में हुई। उस समय चोर प्रतिमा को हलैना के पास जंगल में पटक गए। चौथी चोरी लॉकडाउन में हुई,चोर केवल छत्र,मुकुट आदि को चुरा कर ले गए,जिसे भी चोर वापिस मन्दिर के पास ही जंगल में पटक गए।


वैशाख में लगता है मेला
श्री श्वेताम्बर जैन तीर्थ ट्रस्ट की ओर से गांव सिरस के मन्दिर पर अनेक धार्मिक कार्यक्रम होते हैं, लेकिन वैशाख वदी पंचमी के दिन प्रति साल मेला लगता है, जिस दिन रथयात्रा निकाली जाती है। विनोद कुमार जैन ने बताया कि वैशाख वदी पंचमी के दिन दीवान जोधाराज पल्लीवाल बहिन से मिलने रथ से आए, जिनकी याद में प्रतिवर्ष रथ मेला लगता है। जिसमें राजस्थान, गुजरात, उत्तरप्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, हरियाणा आदि प्रान्त से जैन समुदाय के लोग आते हैं।


रोजगार का अभाव देख किया पलायन
गांव सिरस में करीब 250 साल पहले तक जैन समुदाय के अनेक परिवार निवास करतेथे, लेकिन धन्धा कमजोर एवं सूखा से परेशान होकर पलायन कर गए, जहां उनका व्यापार  पनप गया और वहां ही स्थाई निवास बना लिया। जो केवल गांव सिरस में मन्दिर के दर्शन का आते है और कुछ दिन ठहराव कर वापिस लौट जाते है। विनोद कुमार जैन के अनुसार सिरस गांव प्राचीनकाल में जैन समुदाय का था, जिनके आज भी गांव में घर बने हुए हैं। ग्रामीणों द्वारा कभी-कभी गांव में निर्माण कराते समय मन्दिर के पत्थर व ईंट आदि निकलते हैं।





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