घर के भीतर की सोच को बदलने की जरूरत

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

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डॉ. शिखा अग्रवाल 


फिर से 8 मार्च आ गया। पूरी दुनिया में महिलाओं के लिए अधिकार, सुरक्षा, बराबरी का दर्जा और सम्मान जैसे शब्द फिर से सुर्खियों में हैं। यह सच है कि महिलाएं अब अपनी मुद्दे विभिन्न प्लेटफार्म से उठाने लगी हैं फिर चाहे वो अखबार या टीवी चैनल हो, यूट्यूब चैनल, मैगजीन या अन्य मंच। दरअसल महिला सशक्तिकरण एक प्रक्रिया है, जो निरंतर चल रही है।

एक समय था जब महिलाएं घर या बाहर होने वाले शोषण और हिंसा को अपनी जिंदगी का सामान्य और स्वाभाविक हिस्सा मानती थी लेकिन अब हिंसा और शोषण के खिलाफ बने कानूनों और शिक्षा ने महिलाओं को जागरूक बनाया है। भारतीय समाज आज भी परंपरागत और आधुनिकता के द्वंद में फंसा है। आधुनि -कता के नाम पर वेशभूषा में बदलाव जरूर आया है लेकिन सोच उतनी नहीं बदली है। परिणामस्वरूप परिवार और समाज में लड़का और लड़की में भेद किया जाता है, महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा, दुष्कर्म और दहेज हत्या जैसे अपराध निरंतर बढ़े हैं। कोरोना के समय लॉकडाउन ने जहां परिवार के सभी सदस्यों को एक साथ रहने का सुअवसर दिया वहीं आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं के प्रति इस दौरान घरेलू हिंसा बहुत ज्यादा बढ़ गई।

पितृ सत्तात्मक सोच अभी भी महिलाओं के बराबरी के अधिकार को स्वीकार करने से हिचकती है तो वहीं उसे निर्णय करने का अधिकार देने की इच्छुक भी नहीं है। यह स्थिति भारत की ही नहीं दुनिया के लगभग सभी देशों में है। संयुक्त राष्ट्र संघ का जेंडर इंडेक्स बताता है कि जहां महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है वहां आर्थिक विकास तेजी से हुआ है लेकिन आज भी कृषि जैसे परंपरागत क्षेत्रों में महिला श्रम का कोई मूल्य नहीं है।

भारत में एक ओर स्त्री को देवी मानकर पूजा जाता है तो वहीं दूसरी ओर ऑनर किलिंग के नाम पर मार दिया जाता है या कन्या भ्रूण हत्या और घरेलू हिंसा की भेंट चढ़ा दिया जाता है। उसे मानव मानकर मानवीय व्यवहार की दरकार है। यह तभी संभव है जब परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी मर्यादित आचरण करना सिखाया जाए। स्त्री और पुरुष दोनों में मानवीय मूल्यों के समावेश का उपक्रम हो।

महिला के प्रति सम्मान का पहला पाठ घर परिवार से शुरू होना चाहिए। जब बचपन से ही बच्चे घर में बड़ों को लड़की और महिला का अपमान करते हुए देखते हैं तो वे घर के बाहर भी किसी भी महिला के साथ ऐसा व्यवहार करने में नहीं झिझकते। परिवार में संवेदनशील माहौल बनाने की आवश्यकता है। लड़कियों को स्वयं भी बाल्यकाल से ही आत्मविश्वासी शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनना होगा। समाज में बदलाव की बात करने से पहले घर के भीतर की सोच को बदलने की जरूरत है, समाज तो अपने आप बदलने लगेगा।

(लेखक राजकीय महाविद्यालय, सुजानगढ़ की सह-प्राचार्य हैं)





 

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