यूं तो बदल रहा है समाज भी, बदल रही है परंपरा, रीति रिवाज, बदल रहे हैं दादा दादी, माँ बाप, बदल रहे हैं सास-ससुर, देवर जेठ पर इन सबसे तेज गति से लड़कियां बदल रही हैं ।
अब वह डरी, सहमी, लाचार नहीं , जीना उनके लिए कोई भार नहीं । उसे पैरों में कुरीतियों की बेड़ी स्वीकार नहीं, केवल औरों के लिए जीने का संस्कार नहीं। अपनी पूरी ताकत से आगे बढ़ने के लिए लड़कियां बदल रही हैं।
वह नहीं है छुई मुई सी बेचारी, लाज शरम की मारी सी नारी। आत्म सम्मान से महकती है वह, खुल कर हंसती और चहकती है वह। आसमान के चाँद तारे छूने के लिए, लड़कियां बदल रही हैं ।
अब वह किसी से नहीं डरती, हर कदम पर अधिकारों के लिए लड़ती। पर उसे कर्तव्यों का भी ज्ञान है, देश, धर्म, समाज का भी ध्यान है। उन्नति के शिखर छूने के लिए, लड़कियां बदल रही हैं।