समीक्षा

डा.सत्यदेव आजाद
जी हाँ, दर्पण देखिए, आइने में निहारिये, मिरर में झांकिए। इंसपैक्शन, निरीक्षण या आडिट दर्पण दिखाने का ही कार्य करता है। वार्षिक सम्मेलन, संगोष्ठी कार्यशाला, हिन्दी दिवस का उद्घाटन, सप्ताह या परववाड़े का समापन, सम्मान समारोह, शील्ड वितरण इत्यादि आयोजनों में आह्वान, अपील, भाषण, सन्देश, संकल्प, मनन चिंतन, वार्षिक कार्यक्रम, प्रशिक्षण, कार्यान्वयन समिति की बैठक इत्यादि में विचार विमर्श आदि के पश्चात् अब यह भी देख लें कि हमने क्या-क्या कहा था, परंतु किया कितना है ? निरीक्षण आडिट राजभाषा हिंदी के क्षेत्र में भी आरम्भ करना है।
कुछ विभागों में औपचारिक आरम्भ हो चुका है। खानापूर्ति के लिए रिपोर्ट बनकर फाइल हो जाती है। निरीक्षण की गुणवत्ता, पारदर्शिता और स्पष्टता में वृद्धि करनी है। ख़ामियों को स्वीकारना है, आवश्यक सुधारात्मक कार्यवाही करनी है। खुले मन से, विशाल हृदय से, सकारात्मक सोच से, आगे बढ़ने की इच्छा से निरीक्षण में निकली कमियों को सुधारना है।
निरीक्षक/ आडिटर को ईमानदारी से अपनी भूमिका निभानी है। जो है, जैसा है सत्य लिखना है। दर्पण वही तो काम करता है। झूठ का वहाँ काम नहीं। ध्यानपूर्वक रिपोर्ट की चर्चा करके प्रबंधन को भी उचित निर्देश देने हैं। दण्ड की जरूरत नहीं, किंतु ढुलमुल नीति भी त्यागनी है। समय – समय पर नियंत्रण और मॉनीटरिंग होनी ही चाहिए। चलता है, वाली नीति छोड़नी होगी। समय देनाहोगा, अधिकारों का उपयोग करना होगा, दायित्व निर्धारित करने होंगे।
आडिटर कुछ बिंदुओं को तो देख ही ले- मासिक, त्रैमासिक, वार्षिक रिपोर्ट में दिखाए गए कितने सही हैं? कितनी नेमप्लेट्स अंग्रेज़ी भाषा में हैं? कितनी रबर स्टाम्प्स हिन्दी की हैं? धारा 3 (3) का उल्लंघन कितनी बार हुआ है ? क्या गृहपत्रिका नियमित है ? कितने आदेश अंग्रेज़ी भाषा में दिए गए। कार्यशाला में तकनीकी लेखन पर चर्चा हो रही है या नहीं। सामान्य कर्मचारी हिन्दी के प्रति क्या दृष्टिकोण रखता है? हिन्दी में लॉग बुक लिखने पर धमकी देने वाले अधिकारी कौन-कौन हैं?
पुस्तकालय में प्रति वर्ष हिन्दी की कितनी पुस्तकों की वृद्धि हुई है। हिन्दी में काम करने वाले कर्मचारियों पर प्रबन्धन वर्ग क्या अन्य पहलुओं पर उनके साथ अन्याय तो नहीं कर रहा है? कितने कम्प्यूटरों में हिन्दी फोंट व सॉफ्टवेयर्स हैं। कार्यान्वयन समिति की बैठक में निर्धारित अवधि का पालन कितना हो रहा है? हिंदी में निरन्तर काम करने वालों को प्रोत्साहन योजनाओं में भाग लेने से रोकने की परोक्ष साजिश क्यों हो रही है? हिंदी दिवस का प्रतिवर्ष मात्र दिखावा हो रहा है या यह प्रभावी भी है? क्या औपचारिक तर्पण नीति से आगे बढ़ कर सकारात्मक दर्पण देखने दिखलाने का भी रचनात्मक कार्य हो रहा है?
उपरोक्त बातें मात्र कुछ संकेतात्मक बिंदु हैं। आडिटर्स उनमें घटा बढ़ा कर स्वस्थ गुणवत्ता वाला आडिट कर सकताहै। डरिए नहीं, हारिये नहीं। दर्पण अपना काम करेगा । दर्पण देखने का काम भी करना है और दिखलाने का भी। बस,आवश्यकता है निस्वार्थ भाव से मातृभाषा हिन्दी के प्रति समर्पित होकर सेवा संकल्प लेने की। इतने वर्ष हो गए, आखिर कब तक हिन्दी अपने ही घर में दासी बनी रहेगी?
(लेखक आकाशवाणी के सेवानिवृत्त वरिष्ठ उद्घोषक और नारी चेतना और बालबोध मासिक पत्रिका ‘वामांगी’ के प्रधान संपादक हैं। 2313, अर्जुनपुरा, डीग गेट, मथुरा (उत्तर प्रदेश))
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