सदैव संघर्ष की भाषा रही है हिंदी

हिंदी दिवस 

  डॉ.अंजीव अंजुम


जिस हिंदी भाषा ने आज से 75 वर्ष पूर्व आजादी की लड़ाई में क्रांतिकारियों और सेनानियों के साथ सारे हिंदुस्तानियों के हाथों में वैचारिकता का हथियार थमाया था, उसी हिंदी की धार को हमने अंग्रेजी की संप्रभुता की चोटों से कुंद कर दिया है।

हिंदी राष्ट्रीय भावनात्मक एकता एवं आंदोलन की वाणी थी। वह इस राष्ट्र की राष्ट्रभाषा व संविधान सम्मत राजभाषा के साथ-साथ वाणिज्य, व्यापार, मीडिया, पत्रकारिता, विज्ञापन आदि की सशक्त भाषा थी, लेकिन वैश्विक वातावरण और बाजारीकरण की नीतियों ने हिंदी की प्रभुता पर गहरा आघात लगाया है। एक संपन्न और सशक्त भाषा होने के बावजूद गुलामी की मानसिकता में पले बढ़े हम हिंदुस्तानियों की उपेक्षा का शिकार आज हिंदी को होना पड़ा है।

आज आजादी की 75 वीं सालगिरह पर क्रांतिकारियों को सच्ची श्रद्धांजलि तभी है जब हम अपनी मातृभाषा हिंदी की महत्ता को जानें  एवं उसे सिद्ध करने का प्रयास करें। आज राष्ट्रवाद का प्रचार प्रसार तभी संभव है जब हम उन क्रांतिकारियों की भाषा को उसका उचित स्थान प्राप्त हो। और इस राष्ट्रभाषा हिंदी को उसका उचित स्थान तभी प्राप्त हो सकता है जब उसमें हम अपने स्वाभिमान का अनुभव करें।

हिंदी संघर्ष की आवाज रही है मुगलों और अंग्रेजों के पश्चात आज भी आजादी के अमृत कारणों को पाने के लिए वह काले अंग्रेजों एवं दूषित मानसिकता वाले शासकों के इरादों से निरंतर संघर्षशील दिखाई दे रही है।

आज हमें हिंदी को अपनी बोलचाल में लाकर इसे बचाने के अभियान को सार्थक करने की दिशा में आजादी के अमृत महोत्सव पर प्रण करना होगा कि अन्य बड़े शक्तिशाली राष्ट्रों की भांति भारत को भी भाषाई सम्मान अर्जित होना चाहिए। हिंदी हमारी सांस्कृतिक चेतना और राष्ट्रीय स्वाभिमान की भाषा बननी चाहिए। इसलिए वैश्विक परिप्रेक्ष्य के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर भी हिंदी को राष्ट्रभाषा का संवैधानिक स्थान प्राप्त  होना चाहिए।

आज भाषाई दृष्टि से राजनीतिक उपेक्षा एवं उदासीनता भी हिंदी के लिए हानिकारक है। आज हमें उन अमर सेनानियों के साथ-साथ उनकी अमर भाषा का मंगल गान भी करना होगा। अगर इस अवसर पर हिंदी का  गौरव गान होता है, तो आजादी के अमृत महोत्सव पर्व की सार्थकता अवश्य सिद्ध होगी।

आओ आज हम सभी आजादी के अमृत महोत्सव पर्व के अवसर पर हिंदी को राष्ट्रभाषा पद पर प्रतिष्ठित कर जन-जन के मन में हिंदी के खोए गौरव का पुनर्प्रतिस्ठापन करने को कृत संकल्पित हों।

(लेखक प्रधानाध्यापक एवं राजस्थान ब्रजभाषा अकादमी जयपुर की पत्रिका ब्रजशतदल के सहसंपादक हैं )

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