अस्तित्व
दिशा पंवार
अस्तित्व की तलाश में,
हर रोज बनती रही, मिटती रही।
समंदर बहुत बड़ा था, घमंड में अड़ा था।
मिट जाएगा खार समंदर का एक दिन,
हर रोज मीठी नदी बन बहती रही।
अस्तित्व की तलाश में……।
अमावस सा जीवन था, अंधेरा भी गहन था,
मिल जाएगा चांद उम्मीदों का एक दिन,
हर रोज उजियाली रात बन ढलती रही।
अस्तित्व की तलाश में……।
मार्ग कब सुगम था, लक्ष्य भी अगम था,
मिल ही जाना था मंज़िल को एक दिन,
हर रोज राह बन चलती रही।
अस्तित्व की तलाश में
हर रोज बनती रही मिटती रही।
(लेखिका राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय सीही सैक्टर 7 फरीदाबाद, हरियाणा में संस्कृत की प्रवक्ता हैं)
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