भरतपुर
अखिल भारतीय साहित्य परिषद्, भरतपुर इकाई की ओर से “बिखरते पारिवारिक एवं सामाजिक संबंध : कारण और निवारण” विषय पर एक विचार और काव्य गोष्ठी का आयोजन ब्रजनगर स्थित एक निजी विद्यालय में किया गया। कार्यक्रम की गरिमा राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी बबीता एवं प्रवीणा बहन के सान्निध्य से और भी बढ़ गई।
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इस अवसर पर मंच पर वयोवृद्ध साहित्यकार डॉ. रामदास शर्मा, विश्व हिंदू परिषद के जिला कार्यवाह डॉ. सतीश भारद्वाज, तथा वरिष्ठ साहित्यकार और पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी ब्रजेंद्र सिंह कौन्तेय विशेष अतिथि रहे। कार्यक्रम की शुरुआत मां शारदे के चित्र पर माल्यार्पण और वरिष्ठ व्यंग्यकार हरिओम हरि द्वारा मां के आह्वान के साथ हुई।
गुरु पूर्णिमा के मौके पर डॉ. हरिओम गौतम दिवाकर ने गुरु वंदना और परिषद गीत प्रस्तुत कर माहौल को भक्तिमय कर दिया। जिला सह संयोजक नरेंद्र “निर्मल” ने परिषद की उपलब्धियां साझा करते हुए कहा कि युवा पीढ़ी को संस्कृति और संस्कारों से जोड़ना ही समय की मांग है।
गोष्ठी में विषय पर विचार रखते हुए प्रो. डॉ. अशोक कुमार गुप्ता ने कहा कि परिवार टूटने की जड़ में संवादहीनता और आधुनिक जीवनशैली की अंधी दौड़ है। उन्होंने बच्चों को मोबाइल से दूर कर परिवार से जोड़ने पर ज़ोर दिया। वहीं रामलीला समिति अध्यक्ष ब्रजेश कौशिक ने गुरु पूर्णिमा के महत्व को रेखांकित करते हुए शिक्षा पद्धतियों को संस्कृति विरोधी बताया।
डॉ. सतीश भारद्वाज ने पारिवारिक मूल्यों में गिरावट को बिखराव का कारण बताया, तो ब्रजेंद्र सिंह कौन्तेय ने कहा कि अखबार की खबरें तक अब शब्दों को शर्मिंदा कर रही हैं, ऐसे में शाश्वत सच्चाइयों की ओर लौटना होगा।
राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी बबीता बहन ने अहंकार, अज्ञानता और बढ़ती नकारात्मकता को पारिवारिक विघटन की जड़ बताया। उन्होंने कहा, “केवल आध्यात्मिकता ही समाधान है।” नरेंद्र सांतरूक ने कहा, “आज ममता और अपनापन ही जिंदगी के गणित को बिगाड़ रहा है।”
डॉ. हरिओम गौतम दिवाकर ने कहा कि मां सबसे बड़ी सहेली है, और जब अच्छी सहेली हो, तो नैतिकता स्वयं आ जाती है। डॉ. रामदास शर्मा ने रामचरित मानस की ओर लौटने को ही समाधान बताया।
काव्य गोष्ठी में कई कवियों ने पारिवारिक संबंधों पर अपने भाव प्रस्तुत किए।
पूरन शर्मा ने कहा, “व्यवस्था गर सनातन होती तो संबंधों में अनबन नहीं होती।”
श्याम सिंह जघीना ‘मधुर’ बोले, “हल करे यक्ष प्रश्नों को गुरु सामर्थ्य देता है।”
डॉ. कृष्ण कन्हैया ने पढ़ा, “बिन परिवार के तो झूठा है हर करम।”
प्रियंका पुरोहित ने कहा, “नूतनता की दौड़ में मानव निर्जन हुआ।”
लक्ष्मण चौधरी बोले, “लग चुकी जंग हर वृक्ष की मूल में।”
पूजा शर्मा ने कहा, “पूजा स्वच्छंद है, फिर भी अनुबंध है।”
सुरेश शर्मा ने कटाक्ष किया, “पिकदेव पिक बोलती थी, नृत्य करती थी मयूरी, आज उल्लू से भरी है देख लो वह डाल पूरी।”
वैद्य सुरेश चतुर्वेदी ने कहा, “अहंकार इतना मानव में, संबंधों में पड़ी दरारें।”
अशोक धाकरे बोले, “बचेंगे कैसे अब परिवार, हवा ये पछुआ आई है, संबंधों के विघटन के संग लाई है।”
राकेश राजस्थानी ने कहा, “चहल-पहल होती थी पहले हर आंगन में।”
राजेंद्र अनुरागी ने कहा, “जिसके सिर पर छांव नहीं है, उसको गले लगाते चल।”
गोविंद डागुर ने कहा, “ए वक्त है गुजारिश, लौटा दे मेरा बचपन, मिट्टी से भरा आंगन, बूंदों से भरा सावन।”
लोकेश सिंघल ने ब्रजभाषा में गीत सुनाकर सभी को हंसा दिया।
संचालन कर रहे हरिओम हरि ने गुरु वंदना करते हुए कहा, “प्रथम गुरु तो मेरी ममतामई है मात, याद कर उनको नमन करता हूं मैं।” उन्होंने सामाजिक एकता को बचाने की जरूरत पर ज़ोर दिया।
कार्यक्रम में पूर्व प्राचार्य वासुदेव लवानिया, वीरेंद्र शर्मा, परशुराम शर्मा, मुकुल शर्मा, रेखा भारद्वाज, राममूर्ति शर्मा, अभिषेक शर्मा, और हैप्पी विनोद सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे। समापन वरिष्ठ साहित्यकार कृष्ण विनोद के आभार वक्तव्य के साथ हुआ।
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