बिना कागज़, बिना कलम… जज ने कर दिया इंसाफ! | तीन आपराधिक केसों में मौखिक ‘रिहाई’, हाईकोर्ट ने बर्खास्त कर कहा – यह बर्दाश्त नहीं

भोपाल 

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) ने न्यायिक प्रणाली को झकझोर देने वाला फैसला सुनाया है। क्लास-2 सिविल जज (Judge) महेंद्र सिंह तारम को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है, क्योंकि उन्होंने तीन आपराधिक मामलों में बिना कोई लिखित आदेश दिए, सिर्फ मौखिक रूप से आरोपियों को बरी कर दिया था। कोर्ट ने इसे गंभीर कदाचार करार देते हुए कहा कि ऐसा व्यवहार न्यायपालिका की साख को नुकसान पहुंचाता है और बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।

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जज तारम मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के माध्यम से चयनित होकर मंडला जिले की तहसील निवास में पदस्थ थे। एक आकस्मिक निरीक्षण के दौरान जिला जज (सतर्कता) को तीन आपराधिक मामलों की फाइलों में कोई लिखित निर्णय नहीं मिला। जांच में सामने आया कि जज ने सिर्फ मौखिक रूप से फैसले सुना दिए थे, और मामले की फाइलें निर्णय-विहीन ही बंद कर दी गई थीं।

इसके बाद तारम को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया और विभागीय जांच शुरू की गई। जांच अधिकारी ने सभी पाँच आरोपों को सही पाया और उन्हें मध्य प्रदेश सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1965 के तहत गंभीर कदाचार का दोषी ठहराया।

याचिका में तारम ने दलील दी कि समान मामलों में एक अन्य सिविल जज को सिर्फ वेतनवृद्धि रोकने की सजा दी गई थी। लेकिन हाईकोर्ट की खंडपीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत शामिल थे, ने दो टूक कहा कि “यह मामला सामान्य नहीं है, बल्कि आपराधिक मामलों में न्याय की मूल प्रक्रिया को दरकिनार करने का मामला है। याचिकाकर्ता को पूरा अवसर दिया गया, लेकिन उसने कर्तव्य का घोर उल्लंघन किया।’

कोर्ट ने यह भी कहा कि रिकॉर्ड से साफ है — ‘जज ने आरोपियों को बिना फैसला लिखे रिहा किया। यह न केवल नियमों के विरुद्ध है, बल्कि कानून के साथ विश्वासघात है। इसे किसी भी रूप में माफ नहीं किया जा सकता।’ इस पूरे मामले ने न्यायपालिका की जवाबदेही और पारदर्शिता पर एक बार फिर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं।

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