धरती पर स्वर्ग की अनुभूति यानी नैनीताल

पर्यटन  

  अशोक गर्ग, भरुच (गुजरात)  


देवभूमि उत्तराखण्ड के नैनीताल जिले का मुख्यालय है- नैनीताल। और शहर के बीचों बीच है नैनी झील। चारों ओर देवदार के वृक्षों से लदी पहाड़ियां और झील के वक्षस्थल पर अठखेलियों करते बादल बरबस ही आपका मन मोह लेंगे। नैनी झील में नौका विहार आपको एक अनूठे आनन्द से भर देगा। कभी धूप, कभी छाँव, कभी बादल, कभी बरसात। मानों चारों मौसम नैनी झील का श्रृंगार करते हों।

झील के तीन तरफ 6-8 फुट चौड़ा पैदल मार्ग है। जहाँ बैंच पर बैठ कर आप झील की सुन्दरता को जी भर कर निहार सकते हैं। इसके साथ-साथ ही द्वि मार्गी सड़क है। आवागमन की समुचित सुविधा है। इसी सड़क को माल रोड कहते हैं। 1400 मीटर लम्बी, 450 मीटर चौड़ी व अधिकतम 27.15 मीटर गहरी नैनी झील औसत समुद्र तल से 1860 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। झील के किनारे अनेक जगह पर नौका विहार के लिए नौकाएं उपलब्ध हैं। इसके अलावा पैर से चलाए जाने वाली पेंडस्टल बोट भी मिलती हैं। बिल्कुल उचित किराये पर।

नैनीताल में ठहरने के लिए सभी बजट  के अनुरूप होटल उचित मूल्य पर उपलब्ध हैं। कुमाऊँ मंडल विकास निगम के टूरिस्ट रैस्ट हाउस भी हैं। इन्हें ऑनलाइन भी बुक किया जा सकता है। यहाँ तल्लीताल में लाका परमा शिवलाल दुर्गा शाह की धर्मशाला भी है जिसमें बहुत ही कम  किराए  पर ठहर सकते हैं। घूमने के लिये टैक्सी उचित भाड़े पर आसानी से उपलब्ध है। झील के सामने ही राज्य परिवहन निगम का बस स्टैण्ड है। नैनीताल शहर व आसपास के पर्यटन स्थलों पर घूमने के लिए  तीन दिन का समय पर्याप्त हैं।

नैनीताल में दर्शनीय स्थल
नैना देवी मन्दिर, नैनीताल जू, नयना पीक, स्नो व्यू पॉइन्ट, लव पॉइन्ट, हनुमान गढ़ी आदि।
आसपास के दर्शनीय स्थलों में भीमताल (22KM), नौकुचिया ताल (27KM), सात ताल (सात झीलों का समूह (26KM), कैंची धाम (बाबा नीव करौरी आश्रम) 37KM,  जागेश्वर धाम (110 KM), अल्मोड़ा (65KM) हैं।

कैसे पहुंचें 
यहाँ का निकटतम रेलवे स्टेशन काठागोदाम 35 किमी है। दिल्ली, हावडा, जयपुर, कानपुर, लखनऊ, देहरादून, जैसलमेर के लिये नियमित रेल सेवा उपलब्ध है। काठगोदाम रेलवे स्टेशन के बाहर से ही परिवहन निगम की बसें व प्राइवेट टैक्सी दिन भर उपलब्ध रहती हैं। निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर (68 Km) है। दिल्ली से उड़ानें मिलती हैं।

नैनीताल का पौराणिक इतिहास
मान्यता के अनुसार क्रोधित शिवजी माता पार्वती के शव  को हाथ में लेकर ताण्डव नृत्य कर रहे थे। तब भगवान विष्णु ने शिवजी के क्रोध से ब्रह्माण्ड को बचाने के लिये अपने चक्र से सती पार्वती के शव के टुकड़े- टुकड़े कर दिये थे। जो धरती पर जहाँ-जहाँ गिरे वहाँ शक्तिपीठ बन गए। लोक मान्यता के अनुसार माता पार्वती की आँख यहाँ पर गिरी थी। वह स्थान पर नैना देवी मन्दिर है। उसी के नाम पर इस झील का नाम नैनीताल (नैनी+ताल) बना । ताल यानी झील। झील का आकार भी आँख के आकार जैसा ही है।

कब जाएं
वैसे तो नैनीताल वर्षभर में कभी भी जा सकते हैं। पर बर्फ देखने का शौक है तो 15 अक्टूबर से 31 जनवरी के बीच का समय सबसे उपयुक्त होगा। तो चलिये प्रकृति के सौन्दर्य का जी भर कर रसपान करने के लिए  नैनीताल । जहाँ से घर लौटने का मन ही नहीं करेगा । नैनी झील की नीरव शांति आपको भावभीना आमंत्रण देती है।

क्या आपने ये खबरें भी पढ़ीं?