तकनीकी जागरूकता से बढ़ेगा जैविक कृषि का ग्राफ: डाॅ. राठौड़

उदयपुर 


महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर का जैविक खेती पर जन जागरूकता अभियान कार्यक्रम


अखिल भारतीय जैविक खेती नेटवर्क परियोजना, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के भारतीय फसल प्रणाली संस्थान, मोदीपुरम द्वारा प्रायोजित जैविक खेती पर जन जागरूकता अभियान का ऑनलाइन आयोजन किया गया। डाॅ.एन.रविशंकर, राष्ट्रीय समन्वयक जैविक खेती नेटवर्क परियोजना, मोदीपुरम (यू.पी.) ने बताया कि इस कार्याक्रम में लगभग 1850 प्रतिभागियों नें भाग लिया।  डाॅ.रविशंकर, ने बताया कि भारत की स्वतन्त्रता के 75 वर्ष पूरे करने की स्मरणोत्सव के रूप में इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसका मुख्य उद्देश्य जैविक खेती के क्षेत्र में अनुसंधान द्वारा विकसति नई तकनीकों को किसानों एवं उत्पादकों तक पहुंचाना है। देश में जैविक कृषि के क्षेत्र में अनुसंधान एवं प्रसार करने लिए देश में 20 नेटवर्क परियोजनाओं के द्वारा कार्य किया जा रहा है।

किसानों तथा ग्राहकों के पास जैविक खाद्यों की सम्पूर्ण जानकारी पहुंचाने की आवश्यकता
मुख्य अतिथि महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के कुलपति डाॅ. नरेन्द्र सिंह राठौड़ ने बताया कि देश में जैविक, प्राकृतिक तथा गाय आधारित कृषि के प्रति रूझान बढ़ रहा है। लेकिन फिर भी देश के कुल नेट कृषि क्षेत्र का मात्र 2 प्रतिशत क्षेत्र प्रमाणित जैविक कृषि में है, जो यह दर्शाता है कि जैविक कृषि के प्रति किसानों एवं जनमानस में जागरूकता काफी कम है। उन्न्होंने ने बताया कि वर्ष 2005 से देश में राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम के माध्यम से जैविक कृषि को बढ़ावा दिया जा रहा है। लेकिन उपज में कमी, जैव-आदानों का सम्पूर्ण ज्ञान का अभाव, सहायक संसाधन, मार्केटिंग अभाव तथा जैविक प्रमाणित खाद्यों की अधिक लागत तथा प्रामाणीकरण की जानकारी किसानों के साथ-साथ ग्राहकों एवं नीति-निर्धारकों को भी होनी चाहिए।

डाॅ.राठौड़ ने बताया कि डिजिटल मिडिया के माध्यम किसानों तथा ग्राहकों के पास जैविक खाद्यों की सम्पूर्ण जानकारी पहुँचाने की आवश्यकता है। किसानों को सूक्ष्म जीवों तथा कार्बन की मिट्टी में घटती संख्या चिन्ता का विषय है। उन्होने कहा कि जैविक कृषि में नाइट्रोजन इकोनोमी का विशेष महत्व है। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय के प्रत्येक अनुसंधान एवं कृषि विज्ञान केन्द्र के फार्म पर एक हैक्टेयर क्षेत्र में प्रमाणिकृत जैविक कृषि की जाएगी। उन्होने बताया कि जैव-विविधता के संरक्षण में जैविक कृषि अहम भूमिका निभा सकती है। खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ पोषण सुरक्षा तथा पर्यावरण संरक्षण के लिए आवश्यक है। डाॅ. राठौड़ ने केन्द्र के वैज्ञानिकों से जैविक कृषि के प्रत्येक घटक एवं आयाम परे जैविक उत्पादकों के साथ प्रतिदिन एवं घटक पर गहन तकनीकी मंथन करने का आह्वान किया।

राजस्थान में जैविक किसानों के पास काफी अवसर
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के उपमहानिदेशक (प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन) डाॅ. सूर्यनारायण भास्कर ने बताया कि राजस्थान में देश में सबसे कम उर्वरक एवं पेस्टीसाइड उपयोग करने वाला राज्य है। अतः निर्यात की दृष्टि से राजस्थान में जैविक किसानों के पास काफी अवसर हैं। पेस्टीसाइड मुक्त खाद्यों का देश में प्रचलन बढ़ रहा है। अतः छाटी जोत के किसानों के लिए समूह प्रमाणीकरण के माध्यम से जैविक खेती को अपनाना चाहिए।

डाॅ. पीयूष पूनिया, कार्यकारी निदेशक, भारतीय कृषि प्रणाली संस्थान, मोदीपुरम ने बतया कि जैविक कृषि को वैकल्पिक कृषि पद्धति के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देने के लिए देश में वर्ष 2004 से कई तकनीकों का विकास किया गया है। इस सभी तकनीकों को गाँवों-गाँवों तक पहुँचाना भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली की प्राथमिकता है।

राजस्थान का जैविक क्षेत्रफल की दृष्टि से देश में दूसरा स्थान
डाॅ. एस.के. शर्मा, निदेशक अनुसंधान तथा परियोजना प्रभारी, जैविक खेती ने विश्वविद्यालय में चल रहीं जैविक खेती अनुसंधान तथा प्रसार तकनीकों की जानकारी दी। डाॅ. शर्मा ने बताया कि विश्वविद्यालय द्वारा राज्य की 13 फसलों के जैविक खेती पैकेज, 20 जैविक आदानों की उत्पादन विधियाँ, जैविक खेती की देशज तकनीकें, जैविक मुर्गीपालन व सिलिका का जैविक खेती में उपयोग, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत जैविक कृषि अनुसंधान तथा लगभग 80,000 से ज्यादा किसानों, प्रसारकार्यकर्ता, वैज्ञानिक एवं विद्यार्थियों द्वारा केन्द्र द्वारा विकसित तकनीको की जानकारी के बारे में बताया।

डाॅ. शर्मा ने बताया कि जैविक खेती की दृष्टि से राजस्थान का विशेष महत्व है। राजस्थान का जैविक क्षेत्रफल की दृष्टि से देश में दूसरा स्थान है। प्रथम स्थान मध्यप्रदेश का है। भारत में 36.7 लाख हैक्टेयर क्षेत्रफल  प्रमाणित जैविक कृषि में है (23 लाख हैक्टेयर कृषित $ 13.7 लाख हैक्टेयर जंगली क्षेत्र)। जबकि जैविक उत्पादन में राजस्थान का 5 वाँ स्थान है। राजस्थान में भारत का लगभग 17 प्रतिशत जैविक कृषि क्षेत्र है। लेकिन जैविक उत्पादन में राजस्थान का भारत में मात्र 5 प्रतिशत हिस्सा है। भारत का जैविक उत्पादन 27.5 लाख टन है। जबकि राजस्थान का जैविक उत्पादन 1.32 लाख टन है। भारत से जैविक उत्पादों का निर्यात लगभग 6.32 लाख टन है, जिसक मूल्य 4686 करोड़ है, जबकि राजस्थान से 23169 टन का जैविक उत्पादों का निर्यात हुआ है, जिनका मूल्य 138 करोड़ है, जो लगभग 3 प्रतिशत ही है। भारत के जैविक खाद्यों का निर्यात वर्ष 2020-21 में 7078 करोड़ (1.04 बिलियन डाॅलर) थ जो 2019-20 की अपेक्षा 51 प्रतिशत अधिक था (4686 करोड़) भारत में जैविक उत्पादों का 58 देशों में निर्यात किया जाता है। अतः राजस्थान के किसानों को जैविक उत्पादों के निर्यात पर ध्यान देना चाहिए।

डाॅ. सम्पत लाल मूंदड़ा, निदेशक प्रसार, प्रसार शिक्षा निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्यागिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से किसानों को जागरूक करने का आह्वान किया। उन्होने कृषि अपशिष्टों के बेहतर उपयोग से खाद बनाने पर अनुसंधान की आवश्यकता बताई। डाॅ. मूंदड़ा ने गोबर की खाद की उन्नत तकनीक को किसानों द्वारा अपनाकर फसल को कीट एवं रोग कम करने के बारे में बताया।

डाॅ.अमित त्रिवेदी, प्रोफेसर (पौध व्याधि), पौध व्याधि विभाग, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर ने जैविक फसलों में कीट प्रबन्धन की विभिन्न जैविक विधियों के प्रकार, फसल की अवस्था तथा विभिन्न जैव-कीटनाशकों की सिफारिशों के बारे में बताया। डाॅ. हेमन्त स्वामी, सहायक प्रोफेसर (कीट विज्ञान), कीट विज्ञान विभाग, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर ने जैविक फसल उत्पादन में कीट-नियंत्रण के बायो कीटनाशक, फार्म प्रबन्धन के अरसायनिक विधियाँ, शस्य क्रियाओं तथा जैव-पेस्टीसाइड बनाने की विधियों की विस्तृत चर्चा की तथा अपनाने की सलाह दी।

डाॅ. एन रविशंकर, प्रधान वैज्ञानिक (आई.सी.ए.आर.), मोदीपुरम (यूपी) ने बताया कि गुणवत्ता युक्त रसायन मुक्त खाद्य पदार्थ का उत्पादन के लिए जैविक कृषि एक महत्वपूर्ण विकल्प है। उन्होंने बतया कि स्वस्थ खाद्यान्न पैदा करने के लिए मिट्टी तथा आस-पास के वातावरण को स्वस्थ रखना आवश्यक है। जैविक खाद्य उत्पाद पेस्टीसाइड, सूक्ष्म हानिकारक जीव, भौतिक गुण तथा रासायनिक घटकों के हिसाब से महत्वपूर्ण है। उन्होंने जैविक खेती के अप्रत्यक्ष (जमीन, जल, लाभदायक जीवाणु, केंचुए, उर्जा के स्तर पर सकारात्मक प्रभाव) तथा प्रत्यक्ष प्रभाव में कुल पोषक तत्व तथा एन्टीआक्सीडेन्ट ज्यादा होते हैं तथा रसायन अवशेष मुक्त होते हैं अतः मानव स्वास्थ्य के लिए जैविक खाद्या लाभदायक होते हैं। जैविक खाद्य पदार्थों का स्वाद भी विशेष एवं भिन्न होता है जो कुछ अमिनो एसिड तथा अल्केलाॅइड की उपस्थिति के कारण होता है।

मिलकर जैविक खेती करने पर लागत कम
डाॅ. चेतना जांगीड़, उप-बीज प्रमाणीकरण अधिकारी, राजस्थान राज्य जैविक प्रमाणीकरण एजेन्सी, जयपुर ने जैविक प्रमाणीकरण की एकल एवं समूह जैविक प्रमाणीकरण के लिए आवेदन तथा प्रमाणीकरण की विभिन्न विधियों के बारे में बताया। कृषकों के समूह प्रमाणीकरण के लिए छोटे किसानों (4 हैक्टेयर से कम) को आन्तरिक प्रणाली गठन के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि समूह प्रमाणीकरण की लागत 12000 से 15000 रुपए होती है। किसान प्रमाणीकरण संस्था द्वारा अनुमोदित आदान ही जैविक खेती में काम में ले सकते हैं। सभी कृषक मिलकर जैविक खेती करने पर लागत कम होगी तथा मार्केट बेहतर मिलेगा तथा प्रीमियम मूल्य भी ज्यादा मिलेगा। पवन टाक, कोटा ने बताया कि 40 बीघा में जैविक खेती, मूल्य संवर्धन तथा खेत से बाजार तक सफर करना आवश्य है। उन्होंने रेड पम्पकिन, बीटल की सब्जियों में अनुसंधान की आवश्यकता के बारे में बताया। उन्होंने मिट्टी एवं जल की सही जाँच की आवश्यकता के बारे में बताया। मन्ना लाल यादव, जयपुर ने जैविक बीज की उपलब्धता, जैविक खाद्य प्रसंस्करण तथा जैविक उत्पादों की मार्केटिंग की समस्या के बारे में बताया। नीरज प्रतापति, भारत के बाईसाईकल मेन, हरियाणा ने बताया कि जैविक खाद्यों को उगाने वाली तथा खाने वाली जनता हमारे देश में है, लेकिन जागरूकता की कमी है। रोहित जैन, भारतीय जैविक खेती एसोसिएशन के सचिव, उदयपुर ने कहा कि डायरेक्ट मार्केटिंग बढ़ रही है। किसान जागरूक हुए हैं लेकिन समस्या कन्जूमर कनेक्ट पर आकर रुक जाती है। उन्होंने बताया कि 2000 से ज्यादा ग्राहकों से सीधे मार्केटिंग में लगभग 10 वर्ष लग गए। अतः जैविक किसानों को डायरेक्ट मार्केटिंग पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। डाॅ. रोशन चैधरी, सहायक प्राध्यापक, मप्रकृप्रौविवि, उदयपुर ने कार्यक्रम का संचालन किया तथा धन्यवाद ज्ञापित किया। पियूष चैधरी, विद्यावाच्सपति (एग्रोनामी) राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर ने कार्यक्रम का तकनीकी संचालन किया।





 

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