भरतपुर | योगेन्द्र गुप्ता |
प्रशासनिक सिस्टम करोड़ों का फटका कैसे लगाने पर तुला हुआ है उसका एक नमूना है भरतपुर का नगर निगम। यह निगम तमाम औपचारिकताएं पूरी होने के बाद भी रोड़े पर रोड़े अटका कर करीब दो हजार लोगों के अरमानों पर पानी फेर रहा है।
प्रशासनिक सिस्टम करोड़ों का फटका कैसे लगाने पर तुला हुआ है उसका एक नमूना है भरतपुर का नगर निगम। यह निगम तमाम औपचारिकताएं पूरी होने के बाद भी रोड़े पर रोड़े अटका कर करीब दो हजार लोगों के अरमानों पर पानी फेर रहा है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अपने शासन काल में इस प्रकरण में रिपोर्ट मांग चुके हैं। लेकिन सिस्टम पर इसका कोई असर होता नजर नहीं आ रहा। अब फिर भरतपुर संभागीय आयुक्त ने कलक्टर से इस प्रकरण में रिपोर्ट तलब की है।
मामला भरतपुर के करीब नौ किमी लम्बे रियासतकालीन कच्चे परकोटे का है। यह परकोटा रियासतकाल में भरतपुर शहर के लिए सुरक्षा की दीवार के रूप में काम आता था। आजादी के बाद से इस पर अतिक्रमण होने शुरू हो गए। और तबकी भरतपुर नगर पालिका या नगर परिषद ये अतिक्रमण होने देती रही और अधिकारी और राजनेता अपनी जेब भरते रहे। अब यह परकोटा अतिक्रमणों से पूरी तरह बिंध चुका है। एक प्रकार से अस्तित्व ही खत्म हो चुका है। ऐसे में सरकार ने तय किया कि इन अतिक्रमणों को नियमित कर लोगों को पट्टे जारी किए जाएं। इसके प्रस्ताव बीच-बीच में बनते बिगड़ते रहे। और नगर निगम प्रशासन कोई न कोई पेंच फंसाता रह। नतीजतन पीड़ित लोगों को परकोटा नियमन संघर्ष समिति का गठन करना पड़ा। अब यह अपनी मांग को लेकर आंदोलन कर रही है। समिति की मांग है कि परकोटे पर बसे सभी लोगों को पट्टे जारी किए जाएं। नगर निगम के पूर्व नेता प्रतिपक्ष पार्षद इंद्रजीत भारद्वाज का कहना है कि राज्य सरकार तो चाहती है कि सभी लोगों को पट्टा जारी किए जाएं। पर निगम के अधिकारी एवं स्थानीय राज नेता अवरोधक बन रहे हैं।
बीस फीट रोड को पांच फीट की बता दिया
जब राज्य सरकार का दबाव पड़ा तो नगर निगम ने यह कहते हुए अड़ंगा लगा दिया कि परकोटे के रास्ते पांच फीट के हैं। लिहाजा इसके अतिक्रमणों को नियमित नहीं किया जा सकता। यानी पट्टे जारी नहीं किए जा सकते। दिलचस्प ये है कि नगर निगम स्वयं इस परकोटे पर बीस फीट की रोड पहले ही बनवा चुका है। जिसे वह खुद झुठलाकर पांच फीट की बता रहा है। यहां तक कि पानी और बिजली के कनेक्शन तक पहुंच गए हैं।
ढाई सौ पट्टे तो चार दशक पहले जारी हो चुके
मजेदार बात ये है कि स्थानीय निकाय 1958 से 1977 तक 260 पट्टा जारी कर चुका है। बदले में तबकी नगर परिषद को एक पट्टा जारी करने पर पचास रुपए प्रति वर्ग गज की दर से राजस्व प्राप्त हुआ था। अब सवाल उठ रहा है कि निगम अब इसमें आनाकानी क्यों कर रहा है। जबकि पहले तो पुरातत्व विभाग की बहुत बड़ी अड़चन थी। तब उसकी बिना एनओसी के आखिर नगर निकाय ने पट्टा जारी कैसे कर दिए?
पट्टा जारी हों तो मिलेंगे बीस करोड़
2003 में पुरातत्व विभाग ने इस परकोटे को नगर निगम को सौंप दिया। उस समय इस परकोटे पर 1448 अतिक्रमण थे। पुरातत्व विभाग की अनापत्ति के बाद पट्टा जारी करने की सारी अड़चनें दूर हो गईं। इसके बाद भी निगम प्रशासन आनाकानी कर रहा है। मामला खिंचता रहा। पार्षद इन्द्रजीत भारद्वाज ने इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री को पत्र लिखा तो 2018 में डीएलवी को आदेश दिया कि प्रस्ताव बनाकर भेजें। इस पर नगर निगम ने रिपोर्ट तो भेजी पर यह अड़चन लगाकर कि परकोटे के रास्ते पांच फीट के हैं। जबकि सत्तर फीसदी हिस्सा ऐसा है जहां बीस फीट का रास्ता बना हुआ है। आज इस परकोटे पर करीब दो हजार अतिक्रमण हैं। यदि इन सभी को पट्टा जारी हो जाएं तो नगर निगम को करीब बीस करोड़ का राजस्व प्राप्त हो सकता है जिससे भरतपुर के विकास की राह और खुलेगी।
शुरू किया पोस्टकार्ड अभियान
इस मामले को लेकर आंदोलन कर रही परकोटा नियमन संघर्ष समिति ने मुख्यमंत्री को पोस्टकार्ड लिखो अभियान शुरू कर दिया। गुरुवार को हुई बैठक में यह तय किया गया।बैठक की अध्यक्षता सिमको के पूर्व निदेशक आरएन तिवारी ने की। इसमें राजस्थान शासन एवं निगम प्रशासन की ओर से आ रही बाधाओं पर भी विचार विमर्श किया गया। बैठक में विचार व्यक्त करते करने वालों में राजवीर सिंह, भागमल, चतुर सैनी , किशोर सैनी, परवीना, रेणुदीप गौड, समन्दर , मदनलाल, गोपी, बाबूलाल , नसीम खा, मान सिंह, मंगल सिंह, सरदार दिलीप सिंह, ओमप्रकाश मिश्रा, मदन लाल नाम आदि थे। संचालन गुर्जर नेता श्रीराम चंदेला में किया।
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