भरतपुर
कहते हैं कभी-कभी भगवान मंदिर में नहीं, इंसानों के रूप में मिलते हैं। शनिवार को भरतपुर (Bharatpur) के अपना घर आश्रम (Apna Ghar Ashram) में ऐसा ही दृश्य सामने आया, जिसने न सिर्फ वहां मौजूद लोगों को रुला दिया, बल्कि जिंदगी की उम्मीद पर भरोसा भी मजबूत कर दिया।
असम (Assam) की निवासी रूपाबेन, जो वर्ष 2015 में मानसिक अस्थिरता के चलते अपने घर से निकल गई थीं, पूरे 10 साल बाद अपने बेटे जयंत नायक की बाहों में थीं। मां-बेटे का यह मिलन किसी फिल्मी सीन जैसा था — मगर यह हकीकत थी, और बेहद मार्मिक।
10 साल की तलाश, थकान और टूटते भरोसे की कहानी
रूपाबेन के घरवालों ने उनकी तलाश में थाने, अस्पताल, आश्रम, सोशल मीडिया—हर दरवाज़ा खटखटाया। पर कहीं कोई सुराग नहीं। धीरे-धीरे परिवार ने मान लिया कि शायद अब वे इस दुनिया में नहीं रहीं।
उधर किस्मत ने 2018 में करवट बदली। सूरत से एक मानसिक रूप से अस्वस्थ महिला को सेवा और पुनर्वास हेतु भरतपुर के अपना घर आश्रम लाया गया। वहीं, प्यार, देखभाल और चिकित्सा के साथ उनकी याददाश्त धीरे-धीरे लौटने लगी।
एक दिन उन्होंने “जोरहाट… राजबाड़ी… मेरा घर… मेरा बेटा…” जैसे शब्द बोलना शुरू किया। बस, फिर कहानी ने मोड़ ले लिया।
आश्रम की पुनर्वास टीम ने परिवार ढूंढ़ निकाला
अपना घर आश्रम की टीम ने पुलिस, सोशल मीडिया और स्थानीय नेटवर्क की मदद से खोज शुरू की। काफी प्रयासों के बाद रूपाबेन का परिवार मिल गया। पहली मुलाकात वीडियो कॉल पर हुई — और स्क्रीन के दोनों ओर बहते आंसू, वर्षों की पीड़ा और राहत अपने आप बयान करती रही। पर बेटा जयंत ने कहा — “मां को मैं अपनी बाहों में लेकर ही जाऊंगा।”
और फिर वह दिन आ ही गया…
शनिवार।
आश्रम प्रांगण में लोग शांत खड़े थे।
दरवाज़े पर बेटे को देखकर रूपाबेन धीरे-धीरे आगे बढ़ीं।
दोनों एक-दूसरे की तरफ दौड़े…
और बस — रो पड़े।
वह रोना दर्द का नहीं था,
वह रोना मिल जाने का था, जीवन के लौट आने का था।
वहीं मौजूद लोगों की आंखें भर आईं, कई लोगों ने चेहरा फेर लिया — ताकि उनके आंसू दिख न जाएं।
सभी कानूनी औपचारिकताएं पूरी, मां लौटीं घर
आश्रम सचिव बसंतलाल गुप्ता ने बताया कि पहचान और दस्तावेज सत्यापन के बाद रूपाबेन को विधिवत पुत्र जयंत नायक को सौंपा गया। विदाई के समय स्टाफ के लोग उन्हें अपनी ही परिवारजन की तरह विदा कर रहे थे। क्योंकि यहां सिर्फ सेवा नहीं दी जाती — यहां जीवन वापस दिया जाता है।
यह खबर सिर्फ एक घटना नहीं — एक संदेश है
जहां दुनिया में संवेदनाएं कम होती दिखती हैं, वहां अपना घर आश्रम जैसे स्थान साबित करते हैं कि इंसानियत अब भी ज़िंदा है।
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