जयपुर
राजस्थान स्वेच्छा ग्रामीण शिक्षा सेवा नियम -2010 के तहत राजकीय सेवा में समायोजित महाविद्यालय शिक्षकों को राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी पुरानी पेंशन का लाभ तो दिया नहीं, बल्कि अब अचानक एक आदेश से पदनाम बदलकर उनको एक और झटका दे दिया है। यही नहीं पदनाम बदलने के लिए अपने ही बनाए नियमों की धज्जियां उड़ाकर रख दीं। इससे इन समायोजित शिक्षकों में असंतोष पैदा हो गया है। कॉलेज आयुक्तालय की ओर से जारी आदेश के मुताबिक राजकीय सेवा में नियुक्त ऐसे समायोजित कॉलेज शिक्षकों का पदनाम सहायक आचार्य / सह आचार्य नहीं होकर व्याख्याता ही होगा।
नियम तो यह बना था
जब अनुदानित शिक्षण संस्थाओं के कर्मचारियों को राजकीय सेवा में लिया गया था तो सरकार ने इनके लिए अलग से राजस्थान स्वेच्छया ग्रामीण शिक्षा सेवा नियम 2010 RVRES बनाए। इसके तहत समायोजित शिक्षाकर्मियों को राजकीय सेवा में पहले से ही सेवारत अन्य कर्मियों के समान मानते हुए पदनाम भी उसी अनुरूप कर दिए गए। सेवा नियम 2010 के नियम 5 (VI) में स्पष्ट उल्लेख है कि इन नियमों के अधीन राजकीय सेवा में नियुक्त कर्मचारियों पर पूर्व में नियुक्त राजकीय सेवा के समकक्ष कर्मचारियों के समान ही वेतनमान संबंधी नियम लागू होंगे। लिहाजा जब अनुदानित संस्थाओं के कॉलेज शिक्षकों को समायोजित किया गया तो उनके पद नाम भी इसी अनुरूप बदल दिए गए। जब ये नियम बने थे तब राजकीय सेवा में पहले से कार्यरत कालेज शिक्षकों का पदनाम व्याख्याता ही था। इसलिए चाहे पहले से नियुक्त थे या समायोजित शिक्षक थे, सभी के पदनाम उस समय व्याख्याता हो गए। पर बाद में राज्य सरकार ने 2 फरवरी 2018 को राजपत्र में प्रकाशित एक अधिसूचना द्वारा इनका पदनाम बदल कर व्याख्याता से आचार्य / सह आचार्य कर दिया था। इसलिए कायदे के अनुसार जब ये सभी शिक्षक एक ही संवर्ग के मान लिए गए तो 2 फरवरी 2018 के आदेश भी अपने आप समायोजित कर्मियों पर भी लागू हो गए। पर सरकार ने अपने ही बनाए इन नियम-कायदों की धज्जियां उड़ाकर इन RVRES कॉलेज शिक्षकों का पदनाम बदलने का फरमान जारी कर कह दिया कि ये अब व्याख्याता ही माने जाएंगे।
सवाल तो यह भी उठता है
राज्य की महाविद्यालय शिक्षा एवं स्कूल शिक्षा में कनिष्ठ लिपिक पद के पदनाम को कनिष्ठ सहायक में परिवर्तित किया गया था, जिसके आधार पर स्वतः ही स्कूल शिक्षा एवं महाविद्यालय शिक्षा में कनिष्ठ लिपिक RVRES कार्मिकों का पदनाम कनिष्ठ सहायक कर दिया गया। शासन द्वारा जब ऐसा कनिष्ठ लिपिक पद के लिए किया जा सकता है तो महाविद्यालय व्याख्याता RVRES का पदनाम बदलने के लिए अलग से आदेश की आवश्यकता का क्या औचित्य बनता है ? समान कार्य एवं समान वेतनमान होने के बाद भी महाविद्यालय शिक्षा में व्याख्याता एवं सहायक आचार्य /सह आचार्य जैसे अलग- अलग पदनाम होने का कोई कारण नहीं बनता है।
रूक्टा राष्ट्रीय ने जताया विरोध
राजस्थान सरकार के इस मनमाने फरमान पर राजस्थान विश्व विद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक संघ (रूक्टा) राष्ट्रीय ने एतराज जताया है। संगठन के प्रदेश महामंत्री डा.नारायण लाल गुप्ता ने राज्य के मुख्य सचिव उच्च शिक्षा और कॉलेज आयुक्त को पत्र लिखकर नियमानुसार आर.वी.आर.ई.एस.शिक्षकों के पदनाम सहायक आचार्य / सह आचार्य करने के निर्देश जारी करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि आर. वी. आर.ई.एस. महाविद्यालय शिक्षक कॉलेज शिक्षा विभाग के शैक्षणिक संवर्ग में ही आते हैं, अतः इनका पदनाम भी स्वत: ही व्याख्याता के स्थान पर सहायक आचार्य / सह-आचार्य माना जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि इसके साथ ही RVRES नियम 2010 के नियम 6 में उल्लेखित किया गया है कि इन नियमों के अधीन नियुक्त व्यक्तियों की सेवा शर्ते 1 जनवरी 2004 को अथवा उसके पश्चात सरकारी सेवा में नियुक्त व्यक्तियों पर लागू विभिन्न नियमों द्वारा विनियमित होगी। 1 जनवरी 2004 के बाद राजकीय सेवा में नियुक्त महाविद्यालय शिक्षकों पर राजस्थान शिक्षा सेवा (महाविद्यालय शाखा) नियम 1986 एवं उसके संशोधन लागू होते हैं। अतः RVRES 2010 के तहत नियुक्त महाविद्यालय शिक्षकों पर राजस्थान शिक्षा सेवा (महाविद्यालय शाखा) नियम 1986 एवं इसके संशोधन स्वत: ही लागू होते हैं। इसके लिए RVRES महाविद्यालय शिक्षकों के पदनाम परिवर्तन हेतु पृथक नियमों में संशोधन आवश्यक नहीं है। नियमों में स्पष्ट उल्लेख होने के बाद भी आयुक्तालय कॉलेज शिक्षा द्वारा RVRES महाविद्यालय शिक्षकों को सहायक आचार्य/ सह आचार्य के स्थान पर व्याख्याता (आर.वी.आर.ई.एस.) से संबोधित करना नैसर्गिक न्याय एवं नियमों के विरुद्ध है। आयुक्तालय द्वारा जारी इस आदेश से शिक्षक समुदाय में गहरी नाराजगी एवं पीड़ा है।
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