एक जज द्वारा मौलाना को लेकर सुनाए गए एक फैसले के दौरान CM योगी आदित्यनाथ की तारीफ कर दी और कहा कि राजा की कुर्सी पर एक धार्मिक व्यक्ति को ही बैठना चाहिए; जैसे की योगी आदित्यनाथ। हाईकोर्ट ने जज की इस टिप्पणी को गैर जरूरी, राजनीतिक और निजी बताते हुए सुनवाई से हटा दिया।
प्रयागराज
मामला उत्तरप्रदेश के बरेली का है जहां के ADJ (अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश) रवि कुमार दिवाकर ने बरेलवी संप्रदाय के मौलवी मौलाना तौकीर रजा खान को 2010 की सांप्रदायिक हिंसा का मास्टरमाइंड करार देते हुए अपना फैसला सुनाया और साथ ही टिप्पणी की कि कि सत्ता के पदों पर बैठे लोगों को धार्मिक व्यक्ति होना चाहिए। जैसे कि यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ हैं। तौकीर रजा के खिलाफ आईपीसी की धाराओं के तहत उन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। इसी मामले में सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि सत्ता के पदों पर बैठे लोगों को धार्मिक व्यक्ति होना चाहिए।
कोर्ट ने की तारीफ
मामले में ADJ कोर्ट ने यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ का हवाला देते हुए कहा कि एक धार्मिक व्यक्ति का जीवन त्याग और समर्पण का प्रतीक होता है, ना कि विलासिता में जीने का। कोर्ट ने यह टिप्पणी की कि कैसे तौकीर रजा एक धार्मिक व्यक्ति होने और बरेली में दरगाह आला हजरत के एक बेहद प्रतिष्ठित परिवार से संबंधित होने के बाद भी समुदाय के लोगों को भड़काने, कानून और व्यवस्था को बिगाड़ने में शामिल थे।
बरेली कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि अगर कोई धार्मिक व्यक्ति राज्य का नेतृत्व करता है, तो उसे अच्छे परिणाम मिलते हैं। दार्शनिक प्लूटो ने अपनी पुस्तक रिपब्लिक में ‘दार्शनिक शासक’ की अवधारणा को पेश किया है। वर्तमान समय में न्याय शब्द का प्रयोग कानूनी मायने में किया जाता है, जबकि प्लूटो के समय न्याय शब्द का प्रयोग धर्म के अर्थ में किया जाता था।
कोर्ट ने कहा कि शक्ति का उपयोग करने वालों यानी सत्ता प्रमुख एक धार्मिक व्यक्ति होना चाहिए, क्योंकि एक धार्मिक व्यक्ति का जीवन आनंद का नहीं बल्कि त्याग और समर्पण का होता है। उदाहरण के लिए, सिद्धपीठ गोरखनाथ मंदिर के पीठाधीश्वर महंत बाबा योगी आदित्यनाथ को ले सकते हैं। वे वर्तमान में हमारे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने उपरोक्त अवधारणा को सच साबित कर दिया है।
इस पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बरेली के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश रवि कुमार दिवाकर की इस टिप्पणी को गैरजरूरी, राजनीतिक विचार से प्रेरित और निजी बताया और जज की इस टिप्पणी को कार्रवाई से हटाने का निर्देश दिया। जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की पीठ ने दिवाकर की टिप्पणियों को खारिज करते हुए कहा कि न्यायिक अधिकारी से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वो अपनी व्यक्तिगत या पूर्व धारणाओं और लगाव को व्यक्त या प्रदर्शित करे।
सिंगल बेंच ने कहा कि न्यायिक आदेश लोगों के लिए होते हैं और इस प्रकार के आदेश को जनता द्वारा गलत समझा जा सकता है। बेंच ने कहा कि न्यायिक अधिकारी से यह उम्मीद की जाती है कि उन्हें अपने मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करते वक्त एक सीमा में रहकर अभिव्यक्ति का उपयोग करना चाहिए। साथ ही ऐसे मुद्दे का जिक्र नहीं करना चाहिए जो मूल मुद्दे से संबंधित या अलग हों।
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