दिल्ली के कान्स्टिट्यूशन क्लब में आयोजित राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के ‘नदी संवाद’ कार्यक्रम में सिंचाई, पेयजल आदि के लिए नदियों से निकाले जाने वाले जल की अधिकतम सीमा निश्चित करने का कानून बनाने की मांग की गई।
‘नदी संवाद’ कार्यक्रम में इसके साथ ही सभी नदियों में हर मौसम में न्यूनतम पर्यावरणीय (पारिस्थितिकीय) प्रवाह सुनिनिश्चित करने पर जोर देते हुए। नदियों को स्वयं सक्षम इकाई (Legal Personality) मानने और नदियों के अधिकार व्याख्यायित करने के कानून बनाने की भी मांग की गई।
कार्यकर्म में इस बात पर जोर दिया गया कि नदियों की अपनी जमीन तय की जाइ और उसे सरकारी राजस्व अभिलेख में दर्ज किया जाय। तदनुसार अतिक्रमण की परिभाषा तय की जानी चाहिए। कार्यकर्म में नदियों के दोनों तरफ बफर जोन बनाने, गंदे, पानी के निकास के लिए नदियों के दोनों तरफ समानांतर रास्ता बनाने की भी मांग की गई।
कार्यकर्म में एस. टी. पी. की भूमिका की समीक्षा करने और शोधित जल के उपयोग का लेखा जोखा प्रस्तुत करने का प्रस्ताव पारित किया गया। कार्यक्रम में देश के प्रख्यात विचारक गोविंदाचार्य ने प्रकृति केंद्रित विकास पर जोर दिया।