पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का निधन, उसी दिन ली अंतिम सांस जब कश्मीर से छीना गया था विशेष दर्जा

नई दिल्ली 

जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) के अंतिम राज्यपाल के तौर पर अनुच्छेद 370 (Article 370) को रद्द करवाने की ऐतिहासिक जिम्मेदारी संभालने वाले सत्यपाल मलिक (Satyapal Malik) अब इस दुनिया में नहीं रहे। मंगलवार दोपहर करीब 1 बजे उन्होंने दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में अंतिम सांस ली। वे 79 वर्ष के थे और लंबे समय से किडनी संबंधी बीमारी से जूझ रहे थे। संयोग देखिए, जिस दिन उन्होंने 370 हटाकर कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने वाला ऐतिहासिक फैसला देखा था – वही तारीख, 5 अगस्त, उनकी मौत की तारीख भी बन गई।

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मलिक अगस्त 2018 से अक्टूबर 2019 तक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे और यहीं से देशभर में उनकी पहचान बनी। इसके बाद वे गोवा और फिर मेघालय के राज्यपाल भी रहे। लेकिन उनके सार्वजनिक जीवन में असली भूचाल तब आया, जब उन्होंने खुलकर केंद्र सरकार की नीतियों की आलोचना शुरू कर दी और किसान आंदोलन के समर्थक बन गए।

राजनीति से लेकर राज्यपाल तक: हर मोर्चे पर चर्चा में रहे

उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के हिसावदा गांव में 24 जुलाई 1946 को जन्मे सत्यपाल मलिक मेरठ विश्वविद्यालय से स्नातक और LLB थे। छात्र राजनीति से शुरू हुआ सफर उन्हें विधानसभा, राज्यसभा और फिर लोकसभा तक ले गया। वह लोकदल, कांग्रेस, जनता दल और अंततः भाजपा से भी जुड़े।

1989 में वीपी सिंह के साथ मिलकर उन्होंने बोफोर्स घोटाले के बाद कांग्रेस छोड़ी और संसद में पहुंचे। वहीं 2004 में भाजपा में शामिल होकर बागपत से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में भूमि अधिग्रहण विधेयक की समीक्षा कमेटी के अध्यक्ष भी रहे।

370 हटवाया, फिर हुए आलोचक

5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का ऐलान किया — और इस संवेदनशील फैसले के दौरान प्रदेश के राज्यपाल की जिम्मेदारी सत्यपाल मलिक के कंधों पर थी। कश्मीर में आतंकवाद के दौर के बाद वे पहले ऐसे व्यक्ति थे जो इस संवेदनशील कुर्सी पर राजनीतिक पृष्ठभूमि से पहुंचे थे। लेकिन जब उन्हें वहां से हटाकर गोवा भेजा गया — उनके सुर बदलने लगे।

सरकार पर तीखे हमले और भ्रष्टाचार के आरोप

गोवा और मेघालय के कार्यकाल के बाद सत्यपाल मलिक ने खुले मंचों से मोदी सरकार की किसान नीतियों की आलोचना की। 2022 में उन्होंने ऐलान किया कि वे रालोद और सपा को समर्थन देंगे और किसानों की आवाज बनेंगे।

इसी दौरान उन्होंने दावा किया कि राज्यपाल रहते हुए उन्हें 300 करोड़ की रिश्वत ऑफर की गई थी। उन्हीं प्रोजेक्ट्स में से एक — किरू जल विद्युत परियोजना — में कथित भ्रष्टाचार को लेकर CBI ने उनके खिलाफ केस दर्ज कर लिया। फरवरी 2024 में 8 राज्यों में छापेमारी हुई — दिल्ली से लेकर श्रीनगर और बागपत तक।

CBI का आरोप है कि 2019 में एक कंपनी को बैक डेट में गलत तरीके से ठेका दिया गया। मलिक के परिसरों सहित 30 से ज्यादा जगहों पर तलाशी हुई। सत्यपाल मलिक ने तब साफ कहा था — “मैंने घोटाले का खुलासा किया, और जांच मेरे खिलाफ हो रही है!”

एक ऐसा राजनेता, जिसने दोस्त भी बदले और दुश्मन भी

सत्यपाल मलिक का जीवन एक ऐसे नेता की कहानी है जो कई पार्टियों से जुड़ा, कई विचारधाराओं से गुजरा, और अंततः सत्ता के करीब जाकर खुद सत्ता से ही सवाल पूछने लगा। उनका निधन न सिर्फ एक राजनीतिक जीवन का अंत है, बल्कि हाल के भारत के संवैधानिक इतिहास से जुड़ा एक पन्ना भी आज हमेशा के लिए बंद हो गया।

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