लघु कथा
डॉ. अलका अग्रवाल, सेवानिवृत कॉलेज प्राचार्य
आजकल मेरा पोता जो चेन्नई में पढ़ रहा है, छुट्टियों में घर आया हुआ है, लेकिन अक्सर वह दोस्तों के यहां चला जाता है। जब घर में रहता है तो हमेशा मोबाइल में ही आंखें गड़ाए रहता है। आज जब दोपहर में हम सास- बहू खाना खा रहे थे, वह बाहर से आया। बहू ने कहा,
“तुम भी आ जाओ,अंकुर बेटा। हमारे साथ ही खाना खा लो आज।”
मां की बात मान कर अंकुर भी वहीं डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाने लगा। मैं भी खुश हो गई, चलो कुछ देर तो बात हो सकेगी पोते से। लेकिन वह मोबाइल पर फिल्म देखने में ही मगन था। मैं अब सब्र न रख सकी।
मैने अंकुर से कहा,”कुछ दिन को आए हो बेटा, मोबाइल रख भी दो थोड़ी देर के लिए। खाने का भी स्वाद लो, मां ने सब तुम्हारी पसंद का बनाया है। कुछ अपनी बातें सुनाओ, कुछ हमारी बातें सुनो।”
इतना सुनते ही नाराज होकर वह अपने कमरे में चला गया।अंकुर की मां यानी मेरी बहू ने भी घूरकर मेरी ओर देखा और कठोर स्वर में बोली,”चाहे बच्चा मोबाइल देखते हुए खा रहा था, पर आंखों के सामने बैठा खा तो रहा था।…पर आपकी टोकने की आदत से परेशान होकर, चला गया।..अब पता नहीं ठीक से खाना भी खाएगा या नहीं।”
बहू के इन शब्दों से और इस अप्रत्याशित घटनाक्रम से मैं भी दुखी हो गई। मेरी आंखें भी नम हो गईं । थाली ऐसे ही छोड़कर मुझे भी उठना पड़ा। बहू और पोता दोनों ही मुझसे नाराज़ थे। मुझे समझ में ही नहीं आया कि ………आखिर मेरी गलती क्या है ?
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