सुख
डॉ. अलका अग्रवाल, सेवानिवृत कॉलेज प्राचार्य
यह दुनिया दर्द का दरिया,
पर यहीं हमें रहना है।
अश्रु को समझ कर मोती
जीवन अपना जीना है।
अपना ही गम लगता था,
हमको तो पर्वत जैसा।
जब औरों का दुख देखा
निज दुख है राई जैसा।
है मर्मांतक पीड़ा और,
हैं अनगिन करुण पुकारें।
बोलो ये कैसा मंज़र,
कैसे, इसको स्वीकारें।
हैं रोग, शोक, हैं दुख ही,
क्यों जीवन में मानव के।
जीवन के आसमान में,
क्यों सुख चपला सा चमके।
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