प्रभा
अतुल कुमार मिश्र
भोर की प्रथम किरण,धरा पर उतर रही। घोषणा उजास की,तम प्रभाव हर रही।
हर रही है अंधता,चंहु दीप्त भास है।भास रही भाव को,भाव का विस्तार है।
विस्तारित सत चेतना, सत चेतना साकार है।साकारित है भोर अप्रितम, अप्रितम प्रभा विचर रही।।
(369. कृष्णा नगर, भरतपुर, राजस्थान)
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