इस जज ने अपनी ही पत्नी को 12 साल तक कानूनी जाल में फंसाए रखा, 35 बार सुनवाई टलवाई, 47 तारीखें लगीं | हाईकोर्ट ने की जमकर खिंचाई और फिर दिया ये कड़क आदेश

प्रयागराज 

इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने एक जज (judge) को उनकी पत्नी को गुजारा भत्ता (Alimony) देने में 12 साल की देरी के लिए फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि जज ने अपनी पत्नी को कानूनी प्रक्रिया में उलझाए रखा और परिवार अदालत (Family Court) के आदेश के बावजूद गुजारा भत्ता नहीं दिया। कोर्ट ने पत्नी को हर महीने 20 हजार रुपये गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया है।

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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि एक जज, जिन्हें पत्नी के कानूनी अधिकारों की जानकारी है, उन्होंने गुजारा भत्ता देने के बजाय 12 साल तक कानूनी प्रक्रिया में उलझाए रखा। परिवार अदालत के आदेश के बावजूद पत्नी को गुजारा भत्ते का भुगतान नहीं किया। कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग किया। पत्नी के साथ कानूनी लड़ाई जारी रखकर न्याय में देरी की, इसलिए उनकी पत्नी कोर्ट से सहानुभूति पाने की हकदार है।

कोर्ट ने कहा, ‘पत्नी अर्जी की तिथि से गुजारा भत्ता पाने की हकदार है और विशेष न्यायाधीश (डकैती प्रभावित एरिया) एटा के रूप में कार्यरत पति अली रजा के वेतन खाते से हर महीने 20 हजार रुपये पत्नी को भेजा जाए। यह राशि 17 अगस्त 2019 से 30 हजार रुपये होगी।’ कोर्ट ने सोनभद्र की परिवार अदालत के प्रधान न्यायाधीश को यह निर्देश भी दिया है कि वह तीन सप्ताह में सारी रकम जोड़कर 50 हजार रुपये वाद खर्च सहित बकाये का भुगतान छह महीने में सुनिश्चित कराएं। यह आदेश न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने शबाना बानो की याचिका स्वीकार करते हुए दिया है। याचिका में गुजारा भत्ता बढ़ाने की भी मांग की गई थी। मुकदमे से जुड़े तथ्यों के अनुसार दोनों का निकाह चार मई 2002 को हुआ था। याची का कहना था कि विपक्षी सिविल जज था। शादी में 30 लाख रुपये खर्च हुआ। कार भी दी। फिर भी 20 लाख रुपये अतिरिक्त मांगे गए। दोनों से चार बच्चे (तीन बेटियां, एक बेटा) हुए, जो पति के साथ हैं।

याची का आरोप है कि 18 नवंबर 2013 को उसे घर से निकाल दिया गया। फिर दो दिसंबर 2013 को तलाकनामा भेज दिया गया। झूठे आरोपों का उसने भी डाक से जवाब भेजा। साथ ही धारा 125 में शिकायत दाखिल की। कोर्ट ने कहा, 15 जनवरी 2014 से केस में 64 बार सुनवाई की तारीख लगी। विपक्षी नोटिस के बावजूद कोर्ट में हाजिर नहीं हुआ। मामला मध्यस्थता केंद्र भी भेजा गया। कुल 35 बार सुनवाई टलवाई गई। अंतरिम भत्ता अर्जी पर 47 तारीखें लगीं। विपक्षी निष्पादन अदालत में हाजिर नहीं हुआ और न ही भत्ते का भुगतान किया। कोर्ट ने परिवार अदालत के प्रधान न्यायाधीश की भी अदालती कार्यवाही को लेकर आलोचना की।

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