नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में ऐसा नज़ारा देखने को मिला, जिसे सुनकर कोर्ट खुद हैरान रह गया। एक वकील जी. वी. सरवन कुमार ने याचिका दायर की— सीधी, साफ़ और सीधे आकाश को छूती हुई मांग:
“मुझे तेलंगाना हाईकोर्ट का जज नियुक्त कर दिया जाए!”
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बस। न कोई मेरिट, न कॉलेजियम की सिफारिश, न प्रक्रिया—सीधा “मुझे कुर्सी चाहिए” वाला आवेदन। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चन्द्रन की पीठ यह याचिका देखते ही भौचक्क हो गई।
फाइल पढ़ी।
नजरें उठाईं।
और सीधा तंज दागा—
“क्या हम यहीं सुप्रीम कोर्ट के तीन वरिष्ठ जजों को बुलाएं और तुरंत कोलेजियम की मीटिंग करवा दें?”
“ये न्याय प्रणाली का मज़ाक है!”
अदालत ने साफ कहा— यह याचिका न सिर्फ संविधान, बल्कि कोलेजियम सिस्टम पर भी सीधा उपहास है। जैसे ही कोर्ट का मूड तपता गया, याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने घबराकर कहा—
“माय लॉर्ड, हम याचिका वापस लेना चाहते हैं…”
लेकिन CJI यहीं नहीं रुके। उन्होंने सख्त लहजे में कहा—
“ऐसी याचिकाएँ दायर करने वालों की बार काउंसिल की सनद रद्द हो जानी चाहिए!”
पीठ ने फटकार वकील पर भी लगाई कि
“आपको तो ऐसी याचिका फाइल करने की अनुमति ही नहीं देनी चाहिए थी!”
वकील ने तुरंत माफी मांगी— और मामला समाप्त कर दिया गया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस एक सुनवाई में साफ कर दिया कि—जजों की नियुक्ति कोई ‘मांगो और पा जाओ’ योजना नहीं है। यह संविधान, पात्रता और कोलेजियम के फैसलों पर आधारित गंभीर प्रक्रिया है।
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