मुंबई
बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने एक अहम फैसले में साफ कर दिया है कि अगर कोई हाई कोर्ट जज (Judge) अपने पद से इस्तीफा देता है, तो भी उसे पेंशन का अधिकार मिलेगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ‘इस्तीफा’ भी ‘रिटायरमेंट’ की श्रेणी में आता है और पेंशन का लाभ केवल सुपरएन्युएशन (नियत समय पर रिटायरमेंट) तक सीमित नहीं हो सकता।
क्या है मामला?
यह फैसला पूर्व अतिरिक्त जज पुष्पा गणेदिवाला के मामले में आया, जिन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार (ओरिजिनल साइड) के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया था कि इस्तीफा देने के कारण वे पेंशन की हकदार नहीं हैं। गणेदिवाला का तर्क था कि 1954 के हाई कोर्ट जज (वेतन और सेवा शर्तें) अधिनियम की धारा 14 और 15 में ‘रिटायरमेंट’ का दायरा संकीर्ण नहीं किया जा सकता और इसमें इस्तीफा भी शामिल है।
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सरकार के तर्क और कोर्ट की दो-टूक
सरकार ने कोर्ट में दलील दी कि इस्तीफा देने पर पेंशन का दावा खत्म हो जाता है, क्योंकि यह ‘रिटायरमेंट’ के समान नहीं है। सरकार ने यह भी कहा कि इस्तीफा देना नौकरी छोड़ने का स्वैच्छिक निर्णय है, इसलिए इसे रिटायरमेंट का दर्जा नहीं मिल सकता।
हालांकि, मुख्य न्यायाधीश अलोक अराधे और न्यायमूर्ति भारती डांगरे की खंडपीठ ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि ‘रिटायरमेंट’ का अर्थ सिर्फ सुपरएन्युएशन नहीं है, बल्कि करियर का अंत भी इसमें आता है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से आई स्पष्टता
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यदि संसद का इरादा केवल सुपरएन्युएशन पर रिटायरमेंट को ही पेंशन के योग्य बनाना होता, तो इसे कानून में स्पष्ट रूप से लिखा जाता। इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि पहले पांच अन्य जज, जिन्होंने इस्तीफा दिया था, उन्हें पहले से ही पेंशन का लाभ दिया जा रहा है, लेकिन गणेदिवाला को इससे वंचित रखना असंवैधानिक है।
क्या होगा आगे?
कोर्ट ने गणेदिवाला की याचिका को मंजूर करते हुए आदेश दिया कि वे 14 फरवरी 2022 से पेंशन पाने की हकदार हैं। इसके साथ ही, बॉम्बे हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार का आदेश रद्द कर दिया गया।
इस फैसले का व्यापक प्रभाव
इस फैसले से देशभर के हाई कोर्ट जजों के लिए एक नई मिसाल कायम हुई है। अब यदि कोई जज कार्यकाल पूरा होने से पहले इस्तीफा देता है, तो भी वह पेंशन के हक से वंचित नहीं रहेगा। यह फैसला न्यायपालिका की सेवा शर्तों में एक बड़ा बदलाव लाने वाला साबित हो सकता है।
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