फिल्मों में होली की धूम: नीला, पीला, गुलाबी, कच्चा पक्का रंग किसने डाला रे…

विधि अग्रवाल

जी हां, ये रंग हमारे पावन पर्व होली के त्यौहार से जुड़े हुए हैं। हमारा भारत विभिन्न त्यौहारों का देश है। हमारी भारतीय संस्कृति में पर्व तीज त्यौहारों को बड़े ही श्रद्धा और हर्षोल्लास से मनाया जाता है। होली जैसा पर्व समूचे देश में भिन्न-भिन्न तरीकों से मनाते हैं जिसका अलग ही आनन्द है। यही वजह है कि हमारे फिल्म निर्माताओं ने भी होली का चटक रंग अपने फ़िल्मी गीतों में भी खूब उड़ेला है। भारतीय हिदी फिल्मों में भी  अनेक गीतकार और संगीतकारों ने होली के सतरंगी छींटे दिए हैं बहुत सी फिल्मों में विभिन्न दृश्यों और गीतों में रंग बिरंगे मनोहारी त्यौहार होली का अत्यंत ह्र्दयस्पर्शी छायांकन हुआ है‘होली’ नमक फिल्म में प्रसिद्ध गीतकार माधोक ने बांसुरी की धुन पर बसंत के शुभागमन पर उसका स्वागत इस प्रकार किया है –
‘फिर फागुन ऋतु आई रे,
जरा बाज रे बांसुरी।’

फिल्म ‘कोहिनूर’ में नायक-नायिका होली पर तन-मन रंगने की बात करते हैं जिसे गीतकार शकील ने इन शब्दों में ढाला है –
‘तन रंग लो जी आज मन रंग लो, तन रंग लो, 
खेलो, खेलो उमंग भर, रंग प्यार के भर लो।’ 

यश चौपड़ा ने तो अपनी फिल्म ‘सिलसिला’ में ऐसा रंग बरसाया कि अमिताभ बच्चन पर फिल्माए गए गीत से पूरी फिल्म रंगमय हो गई और इधर नायिका की चुनरी भीग गई –
‘रंग बरसे भीगे चुनर वाली,
रंग बरसे …होरी है …’

होली में रंग खेलने और भांग पीने का चोली-दामन का साथ है। इसी गीत की आगे की पंक्तियां देखिए-
‘सोने की थारी में भोजन परोसा, 
अरे…खाए गोरी का यार बलम तरसे,
रंग बरसे… होरी है…’

फिल्म ‘पूजा’ की नायिका तो चुनरी और अपना तनमन सब कुछ रंग में डुबो देने के लिए इन सुन्दर शब्दों में कहती है-
‘एक बरस में एक बार ही आती होली प्यारी,
मेरे तन को भिगो दे,
मेरे मन को भिगो दे’
मान ले अरज हमारी’

और सचमुच प्रियतम ने नायिका को अपने रंग में ऐसा रंग दिया कि फिल्म ‘दुर्गेशनन्दिनी’ में राधा को कहना ही पड़ा-
‘अब न डारो श्याम,
अंग-अंग मोरा फड़के, 
रंग पड़े जो गोरे बदन पर,
रूप की ज्वाला भड़के।’

यदि होली के पर्व पर रंग न डालने की मनुहार करें तो खूब रंग डाल दिया जाता है जिसे जहां जो दिखाई पड़ा बस रंग दिया क्योंकि इसमें प्रेम की भावना निहित रहती है कि आज के दिन हर कोई एक ही रंग में रंग जाए। किसी को भी छोड़ा न जाए। ऐसा ही सन्देश फिल्म ‘कटी पतंग’ में आनन्द बख्शी ने अपने गीत में इस तरह पिरोया है-
‘ओ! बबुआ!! होली है!!!
आज न छोड़ेंगे बस हम जोली,
खेलेंगे हम होली,
चाहे भीगे तेरी चुनरिया, 
चाहे भीगे रे चोली,
खेलेंगे हम होली।’ 

लेकिन किस्मत के खेल भी निराले हैं। होली के उल्लास और रंग की उमंग में कहीं पर रंग खेला जा रहा है तो कोई अपने गम में सरोबर है। इसी गीत का दूसरा पहलू देखिए-
‘अपनी-अपनी किस्मत है ये, कोई हंसे कोई रोए,
रंग से कोई अंग भिगोए रे, कोई असुंअन से नैन भिगोए।’

इन्द्रधनुषी सात रंगों में यदि होली की धूम मचाती हुई मस्तों की टोली आ धमके तो निश्चय ही कुछ क्षणों के लिए व्यक्ति अपने सारे दुखों को भूलकर उन्हीं रंगों में रंग जाता है। निर्देशक जे ओमप्रकाश ने अपनी फिल्म ‘आखिर क्यों’ में इसी टोली की धूम मचाई थी, कुछ इस तरह-
‘सात रंग में खेल रही है हम मस्तों की टोली रे,
भीगे दामन चोली रे,
अरे अपने ही रंग में रंग ले मुझको,
याद रहेगी होली रे…!!

फिल्म ‘जय करौली मां’ में प्रियतम की  यही इच्छा है कि होली के दिन गांव की कोई भी गोरी कोरी न रह जाए। किसी न किसी तरह उस पर रंग की बरसात कर दी जाए। तभी तो वह अपने साथियों के साथ गाता है-
‘रंग रंगीली होली, एक छोरा एक छोरी,
होरी में कोई गोरी, रह न जाए कोरी,
पकड़ो रे पकड़ो…’

फागुन के रंगीन मौसम में प्रियतमा अपने प्रियतम से प्रेम की होली खेलने को विह्ल हो उठती है। फिल्म ‘मदर इण्डिया’ में गीतकार नायिका की इच्छा को इन शब्दों में व्यक्त करता है-
‘होली आई रे कन्हाई रंग छलके,
सुना दे जरा बांसुरी, होली आई रे…
बरसे गुलाल रंग मोरे अंगनवा
अपने ही रंग में रंग दे, मोहे सजनवा,
तोरे कारन घर से आई, रंग छलके,
सुना दे जरा बांसुरी,
होली आई रे…

इसी गीत के एक दृश्य में नायिका अपने प्रियतम से अपनी चुनरी पर ऐसा रंग डलवाना चाहती है जो कभी न छूटे-
‘छूटे न रंग ऐसी रंग दे चुनरिया,
धोबनिया धोये चाहे सारी उमरिया,
मोहे आए ना रंग हलके रंग छलके,
सुना दे जरा बांसुरी…होली आई रे…’

चुनरी पर पड़े धानी रंग को पीर की निशानी बताकर एक सखी दूसरी सखी से फिल्म ‘आन’ में कुछ यूं कहती है-
‘देखो मेरी चुनरी का रंग सखी धानी है,
रंग न देना कहीं यह, प्यार की निशानी है।’

होली का यह रंग बिरंगा पर्व हमारी राष्ट्रीय एकता का प्रतीक पर्व है। इस दिन हम समस्त भेदभाव और सारे गिले शिकवे भूलकर प्रेमपूर्वक एक दूसरे से गले लग जाते हैं। फिल्म ‘शोले’ के लिए आरडी बर्मन के संगीत निर्देशन में गीतकार आनन्द बख्शी की शब्द रचना प्रेम सौहार्द और भाईचारे का संदेश सुनाती है-
‘होली के दिन दिल खिल जाते हैं,
रंगों के रंग मिल जाते हैं,
सारे गिले शिकवे भूल कर,
दुश्मन भी गले मिल जाते हैं।’