नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने बीमा कंपनियों (Insurance companies) द्वारा मामूली और काल्पनिक आधार पर इंश्योरेंस क्लेम (Insurance Claim) खारिज करने पर उन्हें फटकार लगाते हुए उनको कड़ी नसीहत दी है। एक मामले की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि बीमा कंपनियां कई मामलों में दावों को मामूली आधार पर मना कर रही हैं। उन्हें दावों का निपटारा करते समय बहुत तकनीकी रवैया नहीं अपनाना चाहिए।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि बीमा कंपनियों को ऐसे दस्तावेज नहीं मांगने चाहिए, जिन्हें बीमाधारक हालातों के कारण पेश कर पाने की स्थिति में न हों। शीर्ष अदालत ने 2013 में चोरी हुए ट्रक के लिए बीमा पॉलिसी के तहत दावे के संबंध में यह टिप्पणी की। न्यायालय ने इस मामले में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के पिछले साल अगस्त में आए आदेश को खारिज कर दिया।
पीठ ने कहा कि ट्रक के मालिक अपीलकर्ता को गलत तरीके से बीमा दावे से वंचित कर दिया गया और बीमा कंपनी दावे का निपटारा करते समय बहुत तकनीकी हो गई और उसने मनमाने ढंग से काम किया। पीठ ने अपने आदेश में कहा, इसलिए मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के मद्देजनर, जब अपीलकर्ता ने पंजीकरण के प्रमाणपत्र की फोटोकॉपी और आरटीओ द्वारा दिए गए पंजीकरण विवरण पेश किए, तो केवल इस आधार पर कि पंजीकरण का मूल प्रमाण पत्र (जो चोरी हो गया है) पेश नहीं किया गया, दावे का निपटारा नहीं करने को सेवा में कमी कहा जा सकता है।
इस बीमा दावे का निपटारा मुख्य रूप से इस आधार पर नकार दिया गया था कि अपीलकर्ता ने पंजीकरण का मूल प्रमाण पत्र या आरटीओ द्वारा जारी पंजीकरण प्रमाण पत्र की प्रमाणित नकल भी प्रस्तुत नहीं की थी। पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता को ऐसे दस्तावेज देने के लिए कहा गया, जिन्हें प्रस्तुत करना उसके नियंत्रण के बाहर था। अदालत ने कहा कि वैध बीमा होने और ट्रक चोरी हो जाने के बाद, बीमा कंपनी को बहुत अधिक तकनीकी नहीं बनना चाहिए। कई मामलों में यह पाया गया है कि बीमा कंपनियां मामूली आधार और तकनीकी आधार पर दावे को खारिज कर रही हैं।
बीमा कंपनी को बहुत अधिक तकनीकी दांवपेंचों के सहारे बीमाधारक को क्लेम से वंचित नहीं करना चाहिए। इसी के साथ कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के दुर्ग में जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग द्वारा अपीलकर्ता की शिकायत को खारिज के आदेश को रद्द कर दिया। राज्य आयोग और एनसीडीआरसी द्वारा पारित आदेश को भी खारिज कर दिया। पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता को दावा करने की तारीख से 7 प्रतिशत ब्याज के साथ 12 लाख रुपए की बीमा राशि मिलनी चाहिए।
यह है पूरा मामला
मामले में चूंकि बीमा कंपनी एक चोरी बीमा दावे का निपटान करने में विफल रही, बीमाधारक ने जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग से संपर्क किया, जिसने शिकायत का निपटारा इस निर्देश के साथ किया कि वह बीमा कंपनी को एक महीने के भीतर ट्रक के पंजीकरण के प्रमाण पत्र की डुप्लिकेट प्रमाणित प्रति प्रस्तुत करेगा और यह कि बीमा कंपनी इसे प्राप्त करने के एक महीने के भीतर बीमा पॉलिसी के नियमों और शर्तों के अनुसार दावे का निपटान करेगी। इसके बाद उसने संबंधित ट्रक के पंजीकरण प्रमाण पत्र की डुप्लीकेट प्रमाणित प्रति प्राप्त करने के लिए आरटीओ के समक्ष एक आवेदन प्रस्तुत किया। लेकिन आरटीओ ने पंजीकरण प्रमाण पत्र की डुप्लीकेट प्रमाणित प्रति जारी करने से इस आधार पर इनकार किया कि ट्रक की चोरी की रिपोर्ट के कारण कंप्यूटर पर पंजीकरण प्रमाण पत्र के बारे में विवरण लॉक कर दिया गया है।
बीमाधारक ने आरटीओ द्वारा प्रदान किए गए पंजीकरण और पंजीकरण विवरण के प्रमाण पत्र की फोटोकॉपी के साथ बीमा कंपनी के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया। उपरोक्त के बावजूद, दावे का निपटारा नहीं हुआ और इसलिए, उसने एक नई उपभोक्ता शिकायत दर्ज की। जिला आयोग ने उक्त शिकायत को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि चूंकि उसने दावे के निपटारे के लिए प्रासंगिक दस्तावेज दाखिल नहीं किए थे, इसलिए दावे का गैर निपटान सेवा में कमी नहीं कहा जा सकता है। जिला आयोग द्वारा पारित इस आदेश की पुष्टि राज्य आयोग और उसके बाद राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग द्वारा की गई है।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अपील में कहा कि बीमा दावे का निपटारा मुख्य रूप से इस आधार पर नहीं किया गया है कि अपीलकर्ता ने पंजीकरण का मूल प्रमाण पत्र या यहां तक कि आरटीओ द्वारा जारी पंजीकरण प्रमाण पत्र की डुप्लीकेट प्रमाणित प्रति भी प्रस्तुत नहीं की है। हालांकि, अपीलकर्ता ने पंजीकरण प्रमाण पत्र की फोटोकॉपी और आरटीओ द्वारा प्रदान किए गए अन्य पंजीकरण विवरण प्रस्तुत किए।
पीठ ने कहा, यहां तक कि बीमा पॉलिसी लेने और बीमा कराने के समय भी बीमा कंपनी को पंजीकरण प्रमाण पत्र की कॉपी जरूर मिली होगी। अतः अपीलकर्ता ने ट्रक पंजीकरण प्रमाण पत्र की डुप्लीकेट प्रमाणित प्रति प्राप्त करने का भरसक प्रयास किया था। हालांकि ट्रक चोरी की रिपोर्ट आने के कारण कंप्यूटर पर पंजीकरण की डिटेल लॉक कर दी गई है और आरटीओ ने पंजीकरण की डुप्लीकेट प्रमाणित कॉपी जारी करने से मना कर दिया है। इसलिए, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में, जब अपीलकर्ता ने पंजीकरण प्रमाण पत्र की फोटोकॉपी और आरटीओ द्वारा प्रदान किए गए पंजीकरण विवरण प्रस्तुत किए थे, केवल इस आधार पर कि पंजीकरण का मूल प्रमाण पत्र (जो चोरी हो गया है) प्रस्तुत नहीं किया गया है, तो दावे का निपटान न होने को सेवा में कमी कहा जा सकता है। लेकिन बीमा कंपनियां तुच्छ आधारों और/या तकनीकी आधारों पर दावे को अस्वीकार कर रही हैं जो गलत है। अदालत ने यह भी कहा कि इस मामले में बीमा कंपनी दावे का निपटान करते समय बहुत तकनीकी हो गई है और उसने मनमाने ढंग से काम किया है।
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