मन
डॉ. शिखाअग्रवाल
मन तो है बादल जैसा,
कभी हल्का, पंख लगा
उड़ता हुआ सा,
खुशियों के आकाश में
खिलखिलाता सा,
तो कभी हो जाता है
कठिन भारी सा,
अपने जीवन की दुख
परेशानियों से भरा,
काले बादल सा।
पर बादल भी तो
हो जाता है हल्का,
झमाझम बरस कर,
फिर मन क्यों नहीं;
आओ, थोड़ा दुःख
साझा कर लें,
इन आंसुओं को
बह जाने दें
और कर निश्चय
आगे बढ़ लें,
तो मन भी
हो जाएगा हल्का,
फिर से, पंख लगा,
आसमान में उड़ते
सफेद बादलों सा।
(लेखिका राजकीय महाविद्यालय, सुजानगढ़ (चूरू) की सेवानिवृत्त सह आचार्य हैं)
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