जीवन दर्शन…

कुछ नई जगहें, कुछ लोग नए…

न्याय – कर्म की धार धरो…

न्याय – कर्म की धार धरो…

हो पुरुषार्थ प्रखर…

है दंभ बहुत मुझको – तुझको, दिखती खामी सब औरों की

क्या पाया कितना छूट गया…

जीवन की आपाधापी में,क्या पाया कितना छूट गया…