नई दिल्ली
देश की चौथी सबसे बड़ी सरकारी बैंक यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (Union Bank of India) एक ऐसे विवाद में फंस गई है, जिसने बैंकिंग सेक्टर में हलचल मचा दी है। बैंक ने देश के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ. के. वी. सुब्रमण्यन (Krishnamurthy V Subramaniam) की एक अप्रकाशित किताब की दो लाख से अधिक प्रतियों का ऑर्डर देकर ₹7.25 करोड़ लुटा दिए, और यह सब तब हुआ जब बैंक का बोर्ड तक अंधेरे में था।
पुस्तक का नाम “India@100: Envisioning Tomorrow’s Economic Powerhouse” है, जिसे रूपा पब्लिकेशन्स द्वारा प्रकाशित किया जाना था। किताब का प्रकाशन जून-जुलाई 2024 के लिए प्रस्तावित था, लेकिन उससे पहले ही यूनियन बैंक ने 189,450 पेपरबैक और 10,422 हार्डकवर कॉपियों की खरीद का फैसला ले लिया। दिलचस्प बात ये है कि किताब तब तक छपी ही नहीं थी, फिर भी इसका वितरण ग्राहकों, स्कूलों, कॉलेजों और लाइब्रेरीज़ में शुरू करने की तैयारी पूरी कर ली गई थी।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बैंक के सपोर्ट सर्विसेज डिपार्टमेंट ने देशभर के 18 ज़ोनल ऑफिस को यह आदेश भेजा कि वे तय संख्या में कॉपियां खरीदें और वितरित करें। हर ज़ोनल ऑफिस को 10,525 पेपरबैक प्रतियां और कुछ हार्डकवर प्रतियां बांटनी थीं। पेपरबैक की कीमत ₹350 और हार्डकवर की ₹597 तय की गई थी। इस भारी भरकम ऑर्डर का 50% भुगतान रूपा पब्लिकेशन्स को एडवांस में कर भी दिया गया।
लेकिन जब इस खर्च को बैंक की बोर्ड मीटिंग (दिसंबर 2024) में मंजूरी के लिए लाया गया, तो बैंक के कार्यकारी निदेशक नितेश रंजन चौंक उठे। उन्होंने साफ कहा कि उन्हें इस ऑर्डर की कोई जानकारी नहीं है और उन्होंने मंजूरी देने से इनकार कर दिया। बोर्ड ने इस निर्णय के पीछे GM (सपोर्ट सर्विसेज) गिरिजा मिश्रा की भूमिका पर सवाल उठाया। बैंक की एमडी और सीईओ ए. मंजुला ने दावा किया कि उन्होंने मिश्रा को किताब खरीदने का कहा था, पर किसी भी नियम को तोड़ने के निर्देश नहीं दिए थे। नतीजतन, 26 दिसंबर 2024 को मिश्रा को सस्पेंड कर दिया गया।
ET की एक रिपोर्ट के अनुसार जनवरी 2025 में, पूरे मामले की जांच के लिए बैंक ने कंसल्टेंसी फर्म KPMG को नियुक्त किया, जिसने महीने के अंत तक अपनी रिपोर्ट सौंप दी। हालांकि रिपोर्ट में क्या निष्कर्ष निकाले गए, इसे सार्वजनिक नहीं किया गया।
इस बीच बैंक कर्मचारी संगठनों ने इस खरीद को लेकर खुलकर विरोध जताया। ऑल इंडिया यूनियन बैंक एम्प्लॉइज एसोसिएशन के महासचिव एन. शंकर ने बैंक की एमडी को पत्र लिखकर मांग की कि इस महाव्यय और अनियमितता की विस्तृत जांच हो और उन अफसरों की भूमिका स्पष्ट की जाए जिन्होंने बिना बोर्ड की जानकारी के यह आदेश जारी करवाया।
शंकर ने पत्र में सवाल उठाया कि एक अप्रकाशित किताब पर करोड़ों रुपये लुटाने से बैंक और उसके ग्राहकों को क्या लाभ हुआ? क्या सार्वजनिक धन के इस दुरुपयोग में बैंक के शीर्ष प्रबंधन की मिलीभगत नहीं थी?
बैंक द्वारा अब तक न तो स्पष्ट जवाब दिए गए हैं और न ही यह बताया गया है कि इतनी बड़ी संख्या में खरीदी गई किताबों का आखिर क्या किया गया।
कहानी में मोड़ अब भी बाकी है…
बैंक के शीर्ष अधिकारियों पर जवाबदेही तय होगी या गिरिजा मिश्रा ही ‘बलि का बकरा’ साबित होंगे? क्या KPMG की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाएगा? क्या पूर्व CEA सुब्रमण्यन की भूमिका भी जांच के दायरे में आएगी? ये तमाम सवाल अब सरकारी बैंकों की पारदर्शिता और जवाबदेही पर बड़ा सवालिया निशान खड़ा कर चुके हैं।
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