भाजपा में धमाल, वसुंधरा राजे ने राजस्थान के भावी मुख्यमंत्री के उम्मीदवार की तरह से किया अपने आपको प्रोजेक्ट, कहा- राजस्थान की गहलोत सरकार को उखाड़ फेंकें, विरोधी खेमे में बढ़ी बेचैनी

योगेन्द्र गुप्ता  

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भरतपुर। देव दर्शन के बहाने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने महिला दिवस से एक दिन पहले सात मार्च को अपनेआपको खुद ही राजस्थान का भावी मुख्यमंत्री के उम्मीदवार की तरह प्रोजेक्ट कर दिया। इसके साथ ही भाजपा में धमाल शुरू हो गया है। कुछ दिन पहले ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पार्टी के राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया और वसुंधरा राजे को यह संकेत दे दिया था कि सब मिलकर चलें। पर राजस्थान के यूपी बॉर्डर पर पूंछरी का लौठा में देव दर्शन करने पहुंची वसुंधरा राजे ने अपने समर्थकों को कहा कि आगामी विधानसभा चुनावों में राजस्थान की गहलोत सरकार को उखाड़ फेंकें। उनका भाषण का अंदाज वही पुराना था। यानी राजस्थान में तो भाजपा को वही चलाएंगी। साफ संकेत था कि उन्हें सीएम पद के उम्मीदवार के रूप में उनके आलावा और कोई स्वीकार नहीं।

गिरिराज भगवान से प्रार्थना- मुझे इतनी ताकत दे दो कि गहलोत सरकार को उखाड़ सकें
राजे के इस बयान के राजनीतिक मायने समझिए। उन्होंने  गिरिराज भगवान से प्रार्थना की कि उनको इतनी ताकत दे दो कि राजस्थान से कांग्रेस को मिलकर उखाड़ सकें। उनके इस बयान से उनके विरोधी खेमे में बेचैनी बढ़ गई है। यानी  वह संकेत दे चुकी हैं कि वह राजस्थान से कहीं बाहर नहीं जाने वालीं। कोई उनको यहां से धकियाने की कोशिश न करे। राजे इस समय पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं।

पर राजे की राह इतनी आसन नहीं 
राजस्थान में नेतृत्व के मामले में  भाजपा की राजनीति भैरोंसिंह शेखावत या फिर वसुंधरा राजे के इर्द गिर्द ही घूमती रही है। इन दोनों दिग्गजों का वह गोल्डन पीरियड था। भाजपा तब लीडरशिप के मामले में कंगाल ही थी। जैसे-तैसे स्व.शेखावत की जगह तब वसुंधरा राजे को प्रोजेक्ट किया गया। राजे ने भी अपने दो कार्यकाल निकाल दिए। राजे पर तब आरोप भी लगते रहे हैं कि उन्होंने अगली पीढ़ी को आगे नहीं बढ़ने दिया। संगठन को दरकिनार किया और अपनी मनमानी की। नतीजतन पार्टी संगठन के अन्दर विरोध होता रहा। हालांकि स्थिति अभी भी वही है। यही वजह है कि केन्द्रीय नेतृत्व पर दबाव बनाने की राजनीति अब चरम पर पहुंच रही है। पर राजे और उनके विरोधी खेमा को भी यह अच्छी तरह पता है कि उनका केन्द्रीय नेतृत्व अब पहले वाला नहीं है जो जल्दी से राजे या किसी और के दबाव  में आ जाए। केन्द्रीय नेतृत्व को यह भी पता है कि पिछली दफा जनता में खास असंतोष नहीं होने के बाद भी भाजपा क्यों हारी। इसलिए केन्द्रीय नेत त्व को दबाव में ले लिया जाए, कोई इतना आसान नहीं। केन्द्रीय नेतृत्व पहले जैसा नहीं। मोदी-अमित शाह की जोड़ी है। और अब राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और जुड़ गए हैं।

मैंने खुद काफी नजदीक से जेपी नड्डा की कार्यशैली को देखा है। वह किसी दबाव में नहीं आने वाले। चाहे वह वसुंधरा राजे हों या फिर उनका कोई विरोधी खेमा। वे सारा गुणा-भाग करने के बाद ही फैसला करेंगे। एक बात और- मोदी-अमित शाह की जोड़ी ने हमेशा नई लीडरशिप को आगे बढ़ाया है। यहां तक कि पार्टी में लीडरशिप की दूसरी और तीसरी पीढ़ी तक तैयार कर दी। इसलिए राजे के लिए पहले की तरह इतना आसान नहीं है। लीडरशिप के मामले में राजस्थान अब पहले की तरह कंगाल भी नहीं है। केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, पूर्व मंत्री राजेंद्र राठौर, उत्तर प्रदेश में भाजपा के संगठन के प्रभारी सुनील बंसल, पूर्व केन्द्रीय राज्य मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर, दीया कुमारी आदि लीडरशिप के रूप में  आगे बढ़ चुके हैं। वरिष्ठ नेता भूपेन्द्र यादव और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला भी इस सूची में हैं। वसुंधरा राजे को भी यह बात अच्छी तरह पता है। इसलिए राजे को अपनी बात मनवाने में पसीने आ रहे हैं। पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष भी उनके मनमुताबिक नहीं बन पाया। वैसे केंद्र सतीश पूनिया को प्रदेश अध्यक्ष और राजे को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना कर राजस्थान में पार्टी की भविष्य की राजनीति का संकेत पहले ही दे चुका है। भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने कहा था कि राजे की भूमिका राष्ट्रीय लेवल पर तय कर दी गई हैं। पर राजे के आज के बयान ने यह साफ कर दिया है कि वे राजस्थान से कहीं नहीं जाने वाली।फिलहाल तो अब भाजपा में राजे और विरोधी खेमों के बीच वर्चस्व की लड़ाई होना तय माना जा रहा है।

विजया राजे सिंधिया को किया याद 
देव दर्शन के दौरान एक सभा को संबोधित करते हुए राजे ने सबसे पहले अपनी मां राजमाता विजयाराजे सिंधिया को याद किया। उन्होंने कहा, ‘मेरी मां ने दीपक को जलाया है, कमल को खिलाया है। उन्होंने न तो कभी दीपक की लौ को कम होने दिया और न कभी कमल को मुरझाने दिया। उनके रग-रग में भाजपा और नस-नस में राष्ट्रवाद था। मैं उन्हीं की बेटी हूं।’

उन्होने कहा कि वे गिरिराज महाराज से विकास विरोधी गहलोत की कांग्रेस सरकार को बेदखल करने की प्रार्थना करने आई हैं, ताकि प्रदेश में फिर से विकास की बहार लाई जा सके। उन्होंने मौजूदा सरकार को दो धड़ों की सरकार संबोधित करते हुए इसे उखाड़ फेंकने की इस मुहिम में साथ देने की अपील की।

वसुंधरा समर्थक ये नेता रहे मौजूद
सांसद सुखबीर सिंह जौनापुरिया, सांसद रंजीता कोली, सांसद डॉ. मनोज राजोरिया, पूर्व मंत्री कालीचरण सर्राफ, पूर्व मंत्री प्रभुलाल सैनी, पूर्व मंत्री हेमसिंह भड़ाना, पूर्व मंत्री कृष्णेंद्र कौर दीपा, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी, राजपाल सिंह शेखावत, पूर्व सांसद बहादुर सिंह कोली, पूर्व विधायक विजय बंसल, पूर्व विधायक अनीता सिंह गुर्जर, जवाहर सिंह आदि उपस्थित रहे।






 

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