भरतपुर
आत्मकल्याण के लिए आवश्यक है हम अपने स्वरूप को पहचानें कि हम हैं कौन? गीता हमारा परिचय हम से कराती है। ये विचार गीता मर्मज्ञ जयपुर निवासी मोहन अग्रवाल ने सीताराम भट्टेवालों की सत्तरहवीं पुण्यतिथि पर आयोजित वर्चुअल स्मृति आयोजन में व्यक्त किए।
अग्रवाल ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण गीता उपदेश में कहते हैं कि ‘ममे पांशी जीव लोके…’ अर्थात सृष्टि के समस्त जीव मेरे ही सनातन अंश हैं। उन्होंने गीता के दूसरे अध्याय सांख्य योग की चर्चा करते हुए कहा कि हमारा स्वरूप अविनाशी है, इस अविनाशी का विनाश कोई नहीं कर सकता। इस अवसर पर श्रीरामचरित मानस का जिक्र भी किया और 84 लाख योनियों में मानव योनि का उद्देश्य व इसकी श्रेष्ठता को समझाया।
अग्रवाल ने कहा कि भगवद्गीता को पढ़ने, सुनने व समझने से कुछ अंश भी हमने अपने जीवन में गृहण कर लिया तो समझो हमारा उद्धार हो गया। कार्यक्रम के प्रारम्भ व अन्त में वीरेन्द्र विष्ट द्वारा भजनों की प्रस्तुति दी गई। योगेश गुप्ता ने आभार प्रकट किया।
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