जयपुर
सेवानिवृत्त समायोजित शिक्षकों ने मुख्यमंत्री से लगाई ‘अभि-चिंतन’ की गुहार
राजस्थान के सरकारी सेवा में समायोजित (RVRES) शिक्षकों की पीड़ा अब उफान पर है। 2011 में अनुदानित शिक्षण संस्थाओं से समायोजित होकर सरकारी सेवा में आए, और फिर सेवा पूरी करने के बाद सेवानिवृत्त हुए शिक्षकों को पुरानी पेंशन, एरियर और आरजीएचएस जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल रहीं। इस अनदेखी और उपेक्षा ने सैकड़ों वरिष्ठ नागरिकों को मानसिक अवसाद की ओर धकेल दिया है, और उनके जीने की तमन्ना को डगमगाने पर मजबूर कर दिया है।
इसी पीड़ा और सामाजिक उपेक्षा को सामने लाने के लिए सोमवार को जयपुर के नेहरू बाल उद्यान में ‘जीवन बचाओ चिंतन कार्यशाला’ का आयोजन किया गया। आयोजनकर्ता राजस्थान सेवानिवृत्त समायोजित शिक्षक कर्मचारी मंच के तत्वावधान में हुई इस कार्यशाला में राज्यभर से 60 वर्ष से ऊपर के सैकड़ों बुजुर्ग शिक्षकों ने भाग लिया। किसी की आंखें नम थीं, किसी की आवाज़ रुंधी हुई — और हर चेहरा कह रहा था कि “हमें अब भी उम्मीद है, लेकिन वक्त बहुत कम बचा है।”
‘अभि-चिंतन’ की मांग, सरकार से सीधे संवाद की दरकार
मंच के मुख्य संचालक विजय उपाध्याय और डी.पी. ओझा ने बताया कि कार्यशाला में आए वरिष्ठ शिक्षकों ने अपनी-अपनी व्यक्तिगत पीड़ा लिखित रूप में मंच को सौंपी। उनमें से अधिकांश ने कहा कि बिना पेंशन और चिकित्सा सुविधा के दवा, इलाज और जीवन-निर्वाह तक करना मुश्किल हो गया है। कुछ लोग तो परिजनों के सहारे चल-फिरकर पहुंचे, जबकि कई सदस्यों ने अपनी पीड़ा लिखित में मंच को भेजी क्योंकि वे अब घर से निकल भी नहीं सकते।
इन सभी आपबीती, वेदनाओं और मानवीय संकट को संज्ञान में लेकर मंच ने मुख्यमंत्री से ‘अभि-चिंतन’ (आपात विचार-मंथन) की मांग करते हुए प्रस्ताव पारित किया। कहा गया कि अगर अब भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया, तो यह उपेक्षा सैकड़ों शिक्षकों की जान पर बन सकती है।
जब आंखों से छलक पड़ा मौन दर्द…
कार्यशाला में पार्वती सैन, सरनजीत, गिर्राज सिंह, राधा पारीक, महावीर माली, उषा सचदेवा, सुधा जैन, लक्ष्मी नारायण, संतोष मिश्रा, मोहन सिंह, मीरा सक्सेना, रामावतार जांगिड़, देवेंद्र सिंह सहित दर्जनों लोगों ने अपने ‘स्मृति और वेदना पत्र’ साझा किए। वहां मौजूद लोगों की आंखें तब भर आईं, जब कुछ वरिष्ठ शिक्षक मंच पर बोलते-बोलते रो पड़े।
मंच की चेतावनी – ‘अब नहीं रुकेगा आंदोलन’
कार्यशाला के अंत में मंच ने स्पष्ट किया कि अगर सरकार ने जल्द ‘एक समान सेवा, एक समान पेंशन’ की नीति लागू नहीं की तो यह संघर्ष और बड़ा रूप लेगा। शिक्षक वर्ग अब सिर्फ ज्ञापन नहीं देगा, बल्कि सड़कों पर उतरने को मजबूर होगा।
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