जयपुर
राजस्थान सरकार ने पंचायत चुनावों को लेकर ऐतिहासिक कदम उठाते हुए राज्य में ‘वन स्टेट, वन इलेक्शन’ प्रणाली की दिशा में बड़ा फैसला किया है। सरकार ने 17 जनवरी 2024 को कार्यकाल पूरा करने वाली 6759 ग्राम पंचायतों के निवर्तमान सरपंचों को प्रशासक नियुक्त कर दिया है। यह फैसला न केवल पंचायतों के सुचारू संचालन के लिए लिया गया है, बल्कि राज्य में एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
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सरपंचों का कार्यकाल बढ़ा, पंचायतों में बने रहेंगे प्रशासक
राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 के तहत विशेष शक्तियों का प्रयोग करते हुए, सरकार ने निवर्तमान सरपंचों को ग्राम पंचायतों का प्रशासक नियुक्त किया है। इनके साथ प्रशासकीय समितियों का भी गठन किया गया है, जिनमें निवर्तमान उप सरपंच और वार्ड पंच शामिल होंगे। ये समितियां प्रशासक के साथ मिलकर पंचायतों के सभी कार्य और नीतिगत निर्णयों को संचालित करेंगी।
एक साथ चुनावों की तैयारी: खर्च और समय की बचत
‘वन स्टेट, वन इलेक्शन’ मॉडल का उद्देश्य पंचायत चुनावों को विधानसभा और लोकसभा चुनावों के साथ एक साथ कराना है। सरकार का मानना है कि इस फैसले से वित्तीय संसाधनों और समय की बचत होगी। एक साथ चुनाव कराने से प्रशासनिक समन्वय भी बेहतर होगा और ग्रामीण विकास की प्रक्रिया तेज होगी।
पंचायतों के खातों पर सरपंचों का नियंत्रण
सरकार ने स्पष्ट किया है कि ग्राम पंचायतों के बैंक खातों का संचालन निवर्तमान सरपंच और ग्राम विकास अधिकारी मिलकर करेंगे। प्रशासकीय समिति की कार्यावधि तब तक रहेगी, जब तक नवगठित ग्राम पंचायत की पहली बैठक आयोजित नहीं होती।
क्यों लिया गया यह फैसला?
राजस्थान में इस समय 11,000 से ज्यादा ग्राम पंचायतें हैं, जिनमें से 6759 का कार्यकाल जनवरी 2024 में समाप्त हो रहा है। मार्च 2024 तक 704 पंचायतों और सितंबर-अक्टूबर 2024 तक 3847 पंचायतों का कार्यकाल पूरा हो जाएगा। इन पंचायतों में प्रशासनिक अंतराल को खत्म करने और ‘वन स्टेट, वन इलेक्शन’ मॉडल को लागू करने के लिए निवर्तमान सरपंचों को प्रशासक बनाकर पंचायत संचालन की जिम्मेदारी दी गई है।
‘मध्य प्रदेश मॉडल’ से प्रेरणा
राजस्थान सरकार ने यह फैसला मध्य प्रदेश मॉडल से प्रेरित होकर लिया है। वहां भी निवर्तमान सरपंचों को प्रशासक बनाकर पंचायतों का संचालन कराया जाता है।
सरकार के फैसले का प्रभाव
- पंचायतों के कार्य रुकने से बचेंगे।
- ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कार्य सुचारू रहेंगे।
- पंचायत चुनावों के साथ-साथ विधानसभा और लोकसभा चुनाव कराने में समन्वय बढ़ेगा।
- चुनावी खर्च और प्रशासनिक दिक्कतें कम होंगी।
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सरकार का संदेश
सरकार ने कहा है कि यह फैसला पंचायतों के विकास और चुनावी सुधार के लिए लिया गया है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशासनिक व्यवस्था में कोई बाधा नहीं आएगी और विकास कार्य पहले की तरह जारी रहेंगे।
ऐतिहासिक कदम या राजनीतिक रणनीति?
यह कदम राजस्थान में प्रशासनिक सुधार के साथ-साथ एक बड़ी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा भी माना जा रहा है। क्या ‘वन स्टेट, वन इलेक्शन’ मॉडल चुनावी प्रक्रिया को सरल बनाएगा या यह ग्रामीण राजनीति में नई चुनौतियां खड़ी करेगा? यह देखना दिलचस्प होगा। राजस्थान के पंचायत इतिहास में यह कदम न केवल बड़ा, बल्कि दूरगामी प्रभाव वाला साबित हो सकता है।
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