नई दिल्ली
26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के दिन उपद्रव को लेकर देश के लोगों का तथाकथित किसान नेताओं पर गुस्सा फूट पड़ा। इसे देखते हुए देश की राजधानी में हिंसक घटनाओं के करीब तीस घंटे बाद ये भड़काऊ नेता मीडिया के सामने आए और माफी मांगी। साथ ही केन्द्र सरकार के सख्त तेवरों को देखते हुए एक फरवरी के अपने संसद मार्च को स्थिगत करने की घोषणा कर दी।
इन किसान नेताओं ने इस उपद्रव को लेकर तमाम सफाई दीं। पर उपद्रव से पहले इन नेताओं द्वारा दिए गए तमाम भड़काऊ भाषणों की वीडियो सामने आने के बाद उनकी सफ़ाई किसी के गले नहीं उतरी। ये नेता एक दूसरे पर हिंसा का ठीकरा फोड़ते रहे। दो किसान संगठनों ने तो अपने को इस आन्दोलन से अलग कर लिया और अपने तम्बू उखाड़ लिए। कार्यकर्ताओं को कह दिया कि वे अपने घर जाएं।
माफी मांगी, पर गलती नहीं मानी
करीब तीस घंटे बाद मीडिया के सामने आए ये नेता बहुत तनाव में और घबराए हुए नजर आए। एक दिन पहले तक जो नेता मुट्ठियां भीच-भीच कर कुछ भी कर देने की बात करते थे, 27 जनवरी को मीडिया से बात करने के दौरान सुर बदले -बदले से थे। उन्होंने इस दौरान माफ़ी तो मांगी। पर अपनी गलती मानने को तैयार नहीं थे। इसके उलट उन्होंने बड़ी चालाकी से केन्द्र सरकार पर ही आरोप जड़ दिया कि उसी ने हिंसा की साज़िश रची। लालकिले पर धार्मिक झण्डा फहराने और उपद्रव करने वाले उसी के एजेण्ट थे। ये सब केन्द्र सरकार ने आंदोलन को बदनाम करने लिए किया। अपने को किसान नेता कहने वाले ये लोग घटने के क़रीब तीस घंटे बाद मीडिया के सामने आए ज़रूर। पर स्क्रिप्ट एक दिन पहले ही रात को लिख ली गई थी।
अब प्रायश्चित का ढोंग
इन नेताओं ने नानुकुर करते माफ़ी मांगने के बाद अपने संसद मार्च को स्थगित करने की घोषणा कर दी। साथ ही कहा कि अब वे हिंसक घटनाओं को लेकर 30 जनवरी को महात्मा गांधी की पुण्य तिथि पर उपवास रख कर प्रायश्चित करेंगे।
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