क्या प.बंगाल में ममता को पटखनी दे पाएगी भाजपा ? | Will BJP be able to defeat Mamta in West Bengal ?

योगेन्द्र गुप्ता  |  कोलकाता  |  ok@naihawa.com

 क्या पश्चिम बंगाल की फायर ब्राण्ड तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी की जड़ें हिल चुकी हैं? जी हाँ, बंगाल में चल रही राजनीतिक उठा-पटक और भाजपा की बढ़ती ताकत तो यही बता रही है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जिस तरह का रवैया अपनाया हुआ है उससे भी यही लगता है। भाजपा की बढ़ती ताकत से वह डरी और सहमी हुई हैं। वह ऐसे मोड़ पर हैं कि उनका एक कदम आगे बढ़ता नहीं दिख रहा। वामपंथी और कांग्रेस एकदम हाशिए पर चले गए हैं।

क्या पश्चिम बंगाल की फायर ब्राण्ड तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी की जड़ें हिल चुकी हैं? जी हाँ,बंगाल में चल रही राजनीतिक उठा-पटक और भाजपा की बढ़ती ताकत तो यही बता रही है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जिस तरह का रवैया अपनाया हुआ है उससे भी यही लगता है। भाजपा की बढ़ती ताकत से वह डरी और सहमी हुई हैं। वह ऐसे मोड़ पर हैं कि उनका एक कदम आगे बढ़ता नहीं दिख रहा। वामपंथी और कांग्रेस एकदम हाशिए पर चले गए हैं।

ममता बनर्जी माकपा की हिंसा वाली संस्कृति का कड़ा प्रतिवाद कर 2011 में सत्ता पर काबिज हुई थीं। लेकिन खुद ममता ने अपनी जमीन खिसकती देख उसी हिंसा वाली संस्कृति को अपना लिया। उनकी खीझ बता रही है कि बंगाल में सब कुछ अच्छा नहीं हैं और वह अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रही हैं। अभी तो फिलहाल तृणमूल में ‘ तू चल मैं आया ‘ की होड़ मची  है। उसमें ताबड़तोड़ इस्तीफे हो रहे हैं।

बंगाल विधानसभा का चुनाव अप्रेल-2021 में होना है। राजनीतिक सूत्र बताते हैं कि तब तक तृणमूल , कांग्रेस और वामदलों में और भगदड़  मचेगी । 2021 के चुनाव की तुलना 2011 के चुनाव से कर सकते हैं। तब ममता सीपीआई की सत्ता को चुनौती दे रहीं थीं। और अब भाजपा ने यह जगह ले ली है।



भाजपा ऐसे बढ़ा रही अपनी ताकत

पश्चिम बंगाल में भाजपा की ताकत कोई यूं  ही अचानक नहीं बढ़ी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बहुत बड़ी ताकत वामपंथ को उसके गढ़ से उखाड़ फेंकने के लिए लम्बे  समय से लगी थी। 2011 के चुनाव में ममता को सत्ता तक पहुंचाने में संघ की बढ़ी हुई ताकत ने भी अप्रत्यक्ष रूप से अपनी अहम भूमिका अदा की थी। संघ की ताकत बढ़ने से बंगाल में भाजपा भी मजबूत होती रही। भाजपा को 2011 के चुनाव में 4.06 फीसदी वोट मिले थे जो 2016 के चुनाव में बढ़कर 10.16 फीसदी हो गए। लोकसभा चुनावों में भी भाजपा की ताकत में इजाफा होता रहा। 2014 के लोकसभा सभा चुनाव में टीएमसी को 34, कांग्रेस को 4,भाजपा को 2 और सीपीआईएम को 2 सीटें मिली थीं। 2019 का लोकसभा सभा चुनाव आते-आते स्थितियां एकदम उलट  तो नहीं पर लगभग बराबरी पर जरूर आ गईं। इसमें टीएमसी की बारह सीटें घटकर 34 से 22 रह गईं और भाजपा एकदम उछलकर दो से अठारह सीटों तक पहुंच गई। सीपीआईएम जीरो पर सिमट गई। कांग्रेस भी चार से दो सीटों पर आ गई।

आक्रामक मुद्रा में है भाजपा

बंगाल विधानसभा चुनाव में अभी कुछ माह बाकी हैं। पर भाजपा अपनी लगातार बढ़ती ताकत से आक्रामक मुद्रा में है। वह दो सौ से ज़्यादा सीटें जीतने का टारगेट लेकर मैदान में उतर रही है। बंगाल में आज जो स्थितियां हैं उससे लग रहा है कि भाजपा इससे ऊपर जा सकती है। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह की 19 दिसम्बर की बंगाल रैली से तो यही संकेत मिल रहे हैं। भाजपा के तेजतर्रार नेता कैलाश विजयवर्गीय बंगाल में चाणक्य की भूमिका में हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले से ही बंगाल में उन्होंने डेरा जमा रखा है। दूसरी तरफ अमित शाह, जेपी नड्डा के धुआंधार दौरे चल रहे हैं। उसने अपने सात बड़े नेताओं को बंगाल में झोंक दिया है। 

ओवैसी की दहशत

एकतरफ ममता में भाजपा का डर बैठ गया है। वहीं असदुद्दीन ओवैसी ने भी ममता बनर्जी के सामने और कड़ी चुनौती पेश कर दी है। ओवैसी ने बंगाल में अपनी पार्टी  के उम्मीदवार मैदान उतारने की घोषणा की है। इससे टीएमसी की चूलें हिल गई हैं। बंगाल में करीब 50 से 60 सीटें ऐसी हैं जिनपर मुस्लिम मतदाताओं का असर है। ममता को डर है कि अब ओवैसी के आने से ये मतदाता कहीं खिसक ना जाएं। अभी तक ममता बनर्जी की इन पर पकड़ बनी हुई थी।


तुष्टिकरण से उखड़ रही जड़ें

ममता बनर्जी ने जिस तरह से मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति को आगे बढ़ाया, उसने टीएमसी की जड़ों को ही कमजोर किया। दुर्गा पूजा पर प्रतिबंध जैसे कदम उठाकर बंगाल में ध्रुवीकरण को हवा दी और इससे भाजपा को वहां अपने पैर पसारने  का मौका मिला।


हर हथकंडा अपनाया

ममता बनर्जी ने बंगाल में भाजपा को रोकने के लिए हर हथकंडा अपनाया। बंगाल की जनता को केनद्रीय योजनाओं के लाभ से वंचित रखा। ममता की पाबंदी के कारण आयुष्मान योजना का लाभ बंगाल की जनता नहीं उठा पा रही। वहीं 6 हजार रुपए की किसान सम्मान निधि की राशि बंगाल के किसानों को नहीं मिल आ रही। ये ऐसी वजह रहीं जिनसे जनता में ममता के प्रति आक्रोश बढ़ा।


कांग्रेस-वामपंथी जाएं तो किधर जाएं ?

भाजपा और टीएमसी की लड़ाई में कांग्रेस और वामपंथी दल यह तय नहीं कर पा रहे कि वे जाएं तो किधर जाएं। दोनों भंवर में फंसे हैं। इनका अभी तक कोई प्लान तक सामने नहीं आया है।