सुप्रीम कोर्ट ने की सरकारी वकीलों की खिंचाई, कहा; या तो ये पेश नहीं होते, पेश हुए तो सुनवाई टालने को कहते हैं

नई दिल्ली 

सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी वकीलों के रवैये पर नाराजगी जाहिर की है और कहा है कि या तो ये पेश नहीं होते, पेश हुए तो सुनवाई टालने को कहते हैं। मामला मध्यप्रदेश से जुड़ा हुआ है जिसमें एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश के सरकारी वकीलों का जिक्र करते हुए ये टिप्पणी की।

चीफ जस्टिस एन. वी. रमना की पीठ ने  राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई और यह कहना पड़ा कि ठीक है फिर हम मुख्य सचिव को तलब कर लेते हैं। इसके बाद राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने बिना शर्त माफी मांगी। पीठ ने कहा, अब मध्य प्रदेश के किसी मामले की सुनवाई तभी होगी, जब एडवोकेट जनरल खुद जिरह करें।

दरअसल सुनवाई की प्रक्रिया शरू होते ही सरकारी वकील ने सुनवाई टालने का आग्रह कर दिया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इससे चीफ जस्टिस नाराज हो गए और कहा, “मध्य प्रदेश राज्य इतना खराब है कि वहां के वकील कभी किसी केस की सुनवाई में कोर्ट की मदद नहीं करते। या तो अदालत आते नहीं और आते हैं तो सुनवाई टालने का आग्रह करते हैं।’

कोर्ट रूम लाइव
सीजेआई: एमपी सरकार की ओर से कितने स्टैंडिंग काउंसिल हैं?
सरकारी वकील: मुझे नहीं पता। मैं पैनल काउंसलर हूं।
सीजेआई: आपको केस कौन असाइन करता है? कोर्ट नोटिस कौन रिसीव करता है?
सरकारी वकील: मेरे पास इसकी जानकारी नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट: हम मुख्य सचिव को तलब करते हैं। वही राज्य सरकार के बचाव में दलीलें देंगे।
सरकारी वकील: माई लॉर्ड, समय दीजिए। हम स्टैंडिंग काउंसिल को उपस्थित होने को कहते हैं।
सीजेआई: बहुत समय दे चुके। राज्य सरकार के 20-30 वकील होते हैं और कोई पेश न हो, यह आश्चर्यजनक है।
वकील: माई लॉर्ड यह जानकारी मेरे पास नहीं है।
सीजेआई: इसी केस में नहीं, मध्यप्रदेश के कई केस का यही हाल है। हमें सरकारी वकीलों से मदद नहीं मिलती। हम मुख्य सचिव को बहस करने को कहेंगे। अब यही एक तरीका बचा है।
वकील: मैं अपने व्यवहार के लिए बिना शर्त माफी मांगता हूं।
सीजेआई: हम आपके स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं हैं। अब एडवोकेट जनरल पेश हों तभी सुनवाई करेंगे।

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