जिंदगी
डॉ. शिखा अग्रवाल
ये जिंदगी है, सबकी अलग सी,कहीं खुश है, तो कहीं परेशान सी,कहीं तय रास्तों पर, कहीं बेलगाम सी,हाथ से फिसलती, सूखी रेत सी।
भूख के मंजर हैं दिखते कहीं, तो मिलता कहीं बेहिसाब भी,कहीं जिंदगी लगती ख्वाब सी,तो कहीं देखना मना है ख्वाब भी।
चुप रहने की है सज़ा कहीं,तो लफ्ज़ों से हैं खफा कहीं, ये कैसा फ़लसफा ऐ जिंदगी, अंत में लगे, कुछ मिला ही नहीं।
कहीं हक की लड़नी है लड़ाई,तो कहीं हक को छोड़ने में भलाई,जीवन को समझना आसान नहीं, मिलकर जीना ही लगे सच्चाई।
संघर्षों का ही नाम है जिंदगी, मुश्किलों में भी जी रहें हैं सभी,जो मिला उसमें ही ढूंढ लें खुशी, इसी से ही है जिंदगी में जिंदगी।
(लेखिका राजकीय महाविद्यालय, सुजानगढ़ (चूरू) में सह आचार्य हैं)
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