वायु सम युवा…

आत्मविश्वास 

डॉ.विनीता राठौड़


आज के युवा, शीघ्र शीर्ष पर चढ़ जाते
किन्तु वक़्त के थपेड़े, सह नहीं पाते
सफलतम होने को लालायित रहते
किन्तु आत्म संतोष सेअनभिज्ञ वे रहते

आभासी दुनिया में वे जीने लगते
अभिव्यक्ति भावनाओं की कर नहीं पाते
कल्पनाओं की पूर्ति जब नहीं कर पाते
उदासी व तनाव से तुरंत  घिर जाते

क्रोध, संताप,उलझन या एकाकीपन के चलते
अवसाद ग्रस्त हो,उम्मीद का दामन छोड़ जाते
निराशा के चलते आहत हो जाते
पलायन जीवन से भी कर जाते

आओ अपना फर्ज निभाएं
नकारात्मकता से उन्हें बचाएं
सार्थक कार्य में उन्हें लगाएं
सकारात्मक विकल्प उन्हें सुझाएं

उनके मित्र हम बन जाएं
शेयर एण्ड केयर से उन्हें बचाएं
वायु सम होते हैं युवा
आज उन्हें हम समझाएं

बहती है जब सतत सलिल 
कहलाती है शीतल पवन
पाते ही प्रचण्ड वेग
वही बन जाती है बवंडर

अदम्य साहस, धैर्य व संयम का कर के संचार
जीने का हौंसला उनका हम परवान चढ़ाएं
सोना खरा अगर है  बनना
ताप अग्नि का वहन है करना

फसल खेतों में वहीं लहलहाती
मिट्टी जहां की आर्द्र व नम है होती
प्रस्फुटित, पल्लवित व पुष्पित होने से पहले
बीज धरा में धंस कर पीड़ा का वहन हैं करते
सूरज की भांति गर उन्हें है प्रकाशित होना
आत्मविश्वास को सदैव बनाए रखना होगा।

(लेखिका राजकीय महाविद्यालय, नाथद्वारा, राजसमन्द में प्राणीशास्त्र की सह आचार्य हैं)

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