सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और ललिता प्रसाद सुकुल का भावपूर्ण स्मरण

कोलकाता

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बसंत पंचमी पर बंगीय हिंदी परिषद का  स्थापना-दिवस और निराला-सुकुल जयंती समारोह का भव्य आयोजन कोलकाता विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो.अमरनाथ की अध्यक्षता में किया गया। प्रधान अतिथि के बाल्डविन महाविद्यालय, बेंगलुरु की डॉ. उषारानी राव तथा प्रधान वक्ता  जाने-माने कवि बोधिसत्व थे। कार्यक्रम का आयोजन गूगल मीट से ऑनलाइन किया गया।मुम्बई से ही प्रसिद्ध कवि अजय बनारसी भी मुख्यवक्ता के रूप में कार्यक्रम से जुड़े रहे। 

सकुल जी ने हिंदी साहित्य को अपनी रचनाओं और कार्यों से समृद्ध किया
कार्यक्रम का शुभारंभ रमाकांत सिन्हा की सरस्वती वंदना से हुआ। अपना प्रधान वक्तव्य रखते हुए बोधिसत्व ने आचार्य ललिता प्रसाद सुकुल की रचनाओं और उनके कार्यों के आधार पर उनका अभिनव मूल्यांकन प्रस्तुत किया और कहा कि सन 1932 से ही सुकुल जी ने हिंदी साहित्य को अपनी रचनाओं और कार्यों से समृद्ध करना शुरू कर दिया था और मृत्यु पर्यंत उनका यह प्रयास अनवरत चलता रहा लेकिन आज की पीढ़ी आचार्य सुकुल के बारे में कम ही जानती है।

बोधिसत्व ने बताया कि सुकुल जी की पुस्तकों को खोजकर एक साथ प्रकाशित करने की आवश्यकता है ताकि लोग सुकुल जी के साहित्यिक अवदानों से परिचित हो सकें। परिषद की कार्यकारी अध्यक्ष प्रो.राजश्री शुक्ला ने बोधिसत्व के इस सुझाव का स्वागत किया और आश्वस्त किया कि परिषद इस दिशा में शीघ्र ही अग्रसर होगी। 

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में अमरनाथ ने सुकुल जी के कार्यों की चर्चा की और बताया कि किस प्रकार सुकुल जी ने कलकत्ता विश्वविद्यालय में स्वतंत्र हिंदी विभाग की स्थापना को लेकर संघर्ष किया और बाद में बंगीय हिंदी परिषद की स्थापना की जिसे उन दिनों हिंदी का तीर्थ भी कहा जाता था और समस्त समकालीन रचनाकार परिषद से जुड़े हुए थे। उन्होंने सुकुल जी के संस्थागत कार्यों को उनके लेखकीय अवदान से भी अधिक महत्वपूर्ण माना।

निराला का साहित्य जितना पढ़ो उतने रूपों में उभरकर आता है
अजय बनारसी ने निराला जी के व्यक्तित्व के विविध पक्षों की चर्चा की और अपनी एक कविता का पाठ भी किया जो निराला की ‘तोड़ती पत्थर’ से प्रेरित होकर लिखी गई थी। श्रीमती दीपा ओझा ने निराला जी की कविता की आवृत्ति प्रस्तुत की। डॉ. उषारानी राव ने निराला जी के साहित्य का विवेचन किया और बताया कि निराला जी को जितनी बार पढ़ा जाए उतनी बार उनकी विशिष्टताएं नए रूपों में उभर कर सामने आती हैं। निराला का व्यक्तित्व और उनका कृतित्व अगाध था।

हिंदी को रोजगार से जोड़ा जाए
प्रो.अमरनाथ ने इस बात पर चिंता भी व्यक्त की कि अंग्रेजी माध्यम के बच्चे निरंतर हिंदी साहित्य से दूर होते जा रहे हैं और आने वाले समय में यदि हिंदी को रोजगार से नहीं जोड़ा गया तो स्थिति चिंताजनक हो सकती है। कार्यक्रम का संचालन परिषद के मंत्री डॉ. राजेन्द्र नाथ त्रिपाठी  ने किया और धन्यवाद ज्ञापन परिषद के संयुक्त मंत्री डॉ. रणजीत कुमार ने दिया।

कार्यक्रम में परिषद की कार्यकारी अध्यक्ष प्रो.राजश्री शुक्ला , सुषमा राय पटेल, पुष्पा मिश्रा, निखिता पांडेय, रावेल पुष्प, अनूप यादव, दिलप्रसाद, फरहत परवीन, गीता शास्त्री, कृष्णकुमार दुबे, किरण वर्मा, मीना प्रसाद, प्रतिभा विश्वकर्मा, प्रीति साव, ऋतु साव, संगीता शुक्ल, श्रीहरि वाणी, श्रीपर्णा तरफदार, सुनीता दुबे, सुदर्शन पुजारी, सिद्धार्थ कुमार त्रिपाठी, डॉ. वसुमति डागा, राजीव कुमार रावत, दुर्गा व्यास, सुषमा दास, आशीष गुप्ता, भानु पांडेय, वीरेंद्र सिंह आदि ने अपनी गरिमामय उपस्थिति दर्ज कराई।





 

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